माँ बागेश्वरी को समर्पित गीत...
कुसुमाकर आकर मुस्काये
वीणावादिनी आईं
वीणावादिनी आईं
नवल राग की मधुर रागिनी
झंकृत करते मन के तार
नम्र बनाएँ मधुर भाषिणी
विद्या से भर दें संसार
झंकृत करते मन के तार
नम्र बनाएँ मधुर भाषिणी
विद्या से भर दें संसार
नई स्लेट पर "ॐ" की भाषा
पुस्तकधारिणी लाईं
पुस्तकधारिणी लाईं
श्वेत हंस की पावनता है
पीत पुष्प की माला
सरल हास्य मुखमंडल सोहे
पीत पुष्प की माला
सरल हास्य मुखमंडल सोहे
कर में साज निराला
एक सूत्र में हमें पिरोने
शुभ वरदायिनी गाईं
शुभ वरदायिनी गाईं
मेरे भारत को तुम देवी
निर्मलता सिखलाना
रहें सभी बन भाई भाई
ऐसी राह दिखाना
निर्मलता सिखलाना
रहें सभी बन भाई भाई
ऐसी राह दिखाना
वेदों को फिर से समझाने
विद्यादायिनी आईं
*ऋता शेखर मधु*
विद्यादायिनी आईं
*ऋता शेखर मधु*
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (25-01-2015) को "मुखर होती एक मूक वेदना" (चर्चा-1869) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंवसंत पंचमी
क्या ये रचना मै अपनी बागेश्वरी पत्रिका में ले सकता हूँ यदि हाँ तो मेल करे -
जवाब देंहटाएंamana.yogesh@gmail.com