वसुधा मिली थी भोर से जब, ओढ़ चुनरी लाल सी।
पनघट चली राधा लजीली, हंसिनी की चाल सी।।
पनघट चली राधा लजीली, हंसिनी की चाल सी।।
इत वो ठिठोली कर रही थी, गोपियों के साथ में ।
नटखट कन्हैया उत छुपे थे, कंकड़ी ले हाथ में ।१।
नटखट कन्हैया उत छुपे थे, कंकड़ी ले हाथ में ।१।
भर नीर मटकी को उठाया, किन्तु भय था साथ में ।
चंचल चपल इत उत निहारें, हों न कान्हा घात में।।
ये भी दबी सी लालसा थी, मीत के दर्शन करूँ।
उनकी मधुर मुस्कान पर निज, प्रीत को अर्पण करूँ।२।
धर धीर, मंथर चाल से वो, मंद मुस्काती चली ।
पर क्या पता था राधिके को, ये न विपदा है टली ।।
तब ही अचानक, गागरी में, झन्न से कँकरी लगी ।
फूटी गगरिया, नीर फैला, रह गई राधा ठगी ।३।
कान्हा नजर के सामने थे, राधिका थी चुप खड़ी।
अपमान से मुख लाल था अरु, आँख धरती पर गड़ी ।।
बोलूँ न कान्हा से कभी मैं, सोच कर के वह अड़ी ।
इस दृश्य को लख कर किसन की, जान साँसत में पड़ी।४।
चितचोर ने झटपट मनाया, अब न छेडूंगा तुझे ।
ओ राधिके, अब मान भी जा, माफ़ भी कर दे मुझे ।।
झट से मधुर मुरली बजाई, वो करिश्मा हो गया ।
मनमीत की मनुहार सुनकर, क्रोध सारा खो गया ।५।
मनुहार सुनकर सांवरे की, राधिका विचलित हुई ।
हँसकर लजाई इस अदा पर, प्रीत भी बहुलित हुई ।।
ये प्रेम की बातें मधुरतम, सिर्फ़ वो ही जानते।
जो प्रेम से बढ़ कर जगत में, और कुछ ना मानते।६।
*ऋता शेखर 'मधु'*
ati sundar! nav varsh ke nav-srijan ke liye hardik badhai!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह
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