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मात्रा विधान - १२२२ १२२२ , १४ मात्रिक सम छंद
चरण-४, चरणारंभ-१ लघु
चरणान्त-२२२(तीन गुरु)
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जिसे संसार ने जाना |
जिसे संसार ने माना ||
सभी में जो समाया है |
सभी में जो समाया है |
न नश्वर है न काया है ||१
उसी से आस मिलती है |
उसी से श्वास खिलती है ||
जहाँ कण -कण लुभाया है|
जहाँ कण -कण लुभाया है|
समझ लो ईश आया है||२
जहाँ विश्वास मिलते हैं |
जहाँ विश्वास मिलते हैं |
वहाँ पर फूल खिलते हैं ||
लगाकर आस का चंदन|
लगाकर आस का चंदन|
करें हम ईश का वंदन ||३
नदी की धार में बहते |
नदी की धार में बहते |
किनारे दूर ही रहते ||
मिले उनका सहारा जब |
मिले उनका सहारा जब |
जहां में कौन हारा कब ||४
धरा की हर फसल कहती |
धरा की हर फसल कहती |
कृपा उनकी बनी रहती ||
तभी पावस बरसते हैं |
तभी पावस बरसते हैं |
तभी तो पेट भरते हैं ||५
दिवस भर सूर्य चलता है|
दिवस भर सूर्य चलता है|
निशा में चाँद ढलता है ||
इशारों पर हिलीं पातें|
इशारों पर हिलीं पातें|
कहें सब ईश की बातें ||६
अमन को ध्यान में धरती |
अमन को ध्यान में धरती |
खुदा से कामना करती ||
दिलों में हों मुहब्बत भी |
दिलों में हों मुहब्बत भी |
रक़ीबों पर मुरव्वत भी ||७
रहें सब साथ मिलजुल कर |
रहें सब साथ मिलजुल कर |
चमन में गुल हँसें खुलकर ||
पवन जब चले बहारों में|
पवन जब चले बहारों में|
नयन रीझे नजारों में ||८
– ऋता शेखर ‘मधु’
– ऋता शेखर ‘मधु’
वाह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर। जय श्रीराम।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नीतीश जी
हटाएंसुंदर सृजन |
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी उपस्थिति उत्साहजनक है, बहुत धन्यवाद अनुपमा जी |
हटाएंएम.एस.सी बॉटनी के बाद छंद का विस्तृत वर्णन...अदद्वभुत है मधु जी ये कॉम्बीनेशन...वाह क्या खूब लिखा है कि-
जवाब देंहटाएंजहाँ विश्वास मिलते हैं |
वहाँ पर फूल खिलते हैं ||
लगाकर आस का चंदन|
करें हम ईश का वंदन
दिल से आभार आदरणीया अलकनंदा जी |
हटाएंअनुपम .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नुपुरं जी !
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