पाठकः ऋता शेखर 'मधु'
पुस्तकः कुछ ठहर ले और मेरी ज़िन्दगी- गीत संग्रह
लेखिकाः गिरिजा कुलश्रेष्ठ
जीवन के अनेक रंग समेटता गीत संग्रह
“कुछ ठहर ले और मेरी ज़िन्दगी” गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी की यह पुस्तक मुझे उन्ही के कर कमलों द्वारा ३ जून २०१७ में मिली थी| यह गीत संग्रह है जिसे पढकर मैं अचंभित होती रही| गिरिजा दी की लेखन शैली, प्रस्तुति, शब्द- चुनाव, भाषा सौन्दर्य बिल्कुल साहित्य अनुरूप लगता है| गीतकार ने अपनी बात में लिखा है,
“काँटों को मैं अपना लूँ, या मृदु कलियों को प्यार करूँ
ये दोनों जीवन के पहलू किसको मैं स्वीकार करूँ|
जीवन में चलने वाले उथल- पुथल की यह अभिव्यक्ति प्रभावशाली है|
कुल ६९ गीतों को १११ पृष्ठों में संजोया गया है| पुस्तक का शीर्षक , उनकी प्रथम कविता है| जीवन में आए झंझावातों से थकी ज़िन्दगी को सांत्वना देकर, बहला फुसलाकर कुछ दिन और रुकने का आग्रह करती लेखिका की सकारात्मक लेखनी मन भाई| काँटो की चुभन से अधिक पुष्प का खिलना भाया|
“काँटों को मैं अपना लूँ, या मृदु कलियों को प्यार करूँ
ये दोनों जीवन के पहलू किसको मैं स्वीकार करूँ|
जीवन में चलने वाले उथल- पुथल की यह अभिव्यक्ति प्रभावशाली है|
कुल ६९ गीतों को १११ पृष्ठों में संजोया गया है| पुस्तक का शीर्षक , उनकी प्रथम कविता है| जीवन में आए झंझावातों से थकी ज़िन्दगी को सांत्वना देकर, बहला फुसलाकर कुछ दिन और रुकने का आग्रह करती लेखिका की सकारात्मक लेखनी मन भाई| काँटो की चुभन से अधिक पुष्प का खिलना भाया|
पुस्तक का प्रकाशन वर्ष २०१४ है| गीत समेटे गये हैं १९७५ से| एक गीत १९८७ का है जिसका शीर्षक है ‘सूर्य गीत’| दिनकर का आगमन होता है तो जग अपनी गति पकड़ता है|
तुम उगे तो
जग हुआ लयमान
तुम भले दिनमान
तुम उगे तो
जग हुआ लयमान
तुम भले दिनमान
कवयित्री का गीत “गीत बनकर गूँज” मार्मिक है| यहाँ दर्द का आह्वान किया है | जीवन की व्यस्तता दिखाई गयी है|
आह भरने सिसकने की
है मुझे फुरसत कहाँ
बोझ इतना बाँटने को
कौन आता है यहाँ
आह भरने सिसकने की
है मुझे फुरसत कहाँ
बोझ इतना बाँटने को
कौन आता है यहाँ
गजलनुमा गीत ‘क्या करें' में बहुत बेबसी है| एक बंद देखिए|
वोटों की भीख माँगी, कितने करार करके
भूले जो जीतकर वो, आवाम क्या करे
वोटों की भीख माँगी, कितने करार करके
भूले जो जीतकर वो, आवाम क्या करे
बच्चे जब बड़े होने लगते हैं तो क्या क्या बदलाव आता है इसका रोचक वर्णन है|
अब उसके अपने दिन हैं
अपनी ही राते हैं|
अपने तर्क विरोध बहस
अपनी ही बातें हैं|
माँ की उँगली छोड़
पाँव खुद खड़ा हो रहा है
बेटा बड़ा हो रहा है|
अब उसके अपने दिन हैं
अपनी ही राते हैं|
अपने तर्क विरोध बहस
अपनी ही बातें हैं|
माँ की उँगली छोड़
पाँव खुद खड़ा हो रहा है
बेटा बड़ा हो रहा है|
अपने गीत ‘आग’ में गिरिजा जी ने किसी वस्तु के सदुपयोग या दुरुपयोग पर सार्थक प्रकाश डाला है|
आग तेरे पास भी है
आग मेरे पास भी है
करना क्या उपयोग आग का
बात यही है खास|
आग तेरे पास भी है
आग मेरे पास भी है
करना क्या उपयोग आग का
बात यही है खास|
गिरिजा जी के सभी गीतों को पढ़ते हुए जीवन की पीड़ाओं से गुजरना, जीवन की नकारात्मकताओं के बीच सकारात्मक बने रहने की सार्थकता, और किसी के द्वारा छले जाने की स्वीकारोक्ति होने पर भी विश्वास न कर पाने की व्यथा अंदर तक झकझोरती है|
गिरिजा दी, आपकी लेखनी सतत चलती रहे और साहित्य जगत समृद्ध होता रहे, इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ पाठकों से भी विनम्र निवेदन है कि वे इस संग्रह को अवश्य पढ़ें|
गिरिजा दी, आपकी लेखनी सतत चलती रहे और साहित्य जगत समृद्ध होता रहे, इन्हीं शुभेच्छाओं के साथ पाठकों से भी विनम्र निवेदन है कि वे इस संग्रह को अवश्य पढ़ें|
पुस्तक का नामः कुछ ठहर ले और मेरी ज़िन्दगी ( गीत संग्रह)
रचनाकारः गिरिजा कुलश्रेष्ठ
प्रकाशकः ज्योतिपर्व प्रकाशन, ९९ ज्ञानखंड-३, इंदिरापुरम, गाजियाबाद, फोन-९८११७२११४७
प्रथम संस्करणः २०१४
मूल्यः १९९/-
समीक्षा- ऋता शेखर 'मधु'
रचनाकारः गिरिजा कुलश्रेष्ठ
प्रकाशकः ज्योतिपर्व प्रकाशन, ९९ ज्ञानखंड-३, इंदिरापुरम, गाजियाबाद, फोन-९८११७२११४७
प्रथम संस्करणः २०१४
मूल्यः १९९/-
समीक्षा- ऋता शेखर 'मधु'
सुन्दर
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