बसंत...
फूली सरसो
सज गए खेत
मन मेरा
बासंती
ताल तलैया
पोखर पोखर
मस्त पवन में
खोकर खोकर
झूमे मोहक
कुसुम कुमुदनी
आम्रकुँज में
बौर सजे हैं
कूक बनी
रसवंती
फागुन आए
भँवरें गाएँ
फाग राग में
दहके पलाश
बनती चंपा
शिव तपस्विनी
अमरबेल पर
लिपट वल्लरी
छुईमुई
लजवंती
नीम गुलाबी
कोमल कोंपल
शुद्ध हवाएँ
तन है सुन्दर
विद्या वर दो
हे सुहासिनी
पीत वसन में
प्रीत सुन्दरी
रंगीली
जयवंती
*ऋता शेखर 'मधु'*
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंप्रीत सुन्दरी
जवाब देंहटाएंरंगीली
जयवंती
बहुत ही अनुपम भाव लिये बेहतरीन प्रस्तुति
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (03-02-2015) को बेटियों को मुखर होना होगा; चर्चा मंच 1878 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत
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