प्रमाणिका छंद--
नदी चली तरंग में, हवा बही उमंग में
बहार ही बहार है, उड़ी हुई पतंग में
बसंत राग गा रहा, खिले हुए गुलाब में
उदास पारिजात भी, हँसे हसीन ख्वाब में
समीर गंध से भरा, शिरीष फूलने लगे
पलाश की सुवास है, बुरांश झूमने लगे
उजास चाँदनी खिली, सजा ललाट व्योम का
सँवारती रही ऋचा, विराट रूप भोम का
निराश भाव त्याग दो, करो न बात ठेस की
बढ़े चलो बढ़े चलो, सुनो पुकार देश की
बुलंद हौसले रहें, उड़ान जानदार हो
हजार शूल बीन लो, इनाम शानदार हो
्बहुत सुन्दर भाव लिए सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत ही कविता। मुझे बहुत अच्छी लगी।
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