रूह से देह तक
देह से रूह तक
अनजान सफर में
कितने ही रहे होंगे
अनुभूतियों के आकाश
अनन्त यात्रा रूह की
देह पाने के लिए
दुर्गम यात्रा देह की
रूह से बिछड़ जाने के लिए
सुना है परमात्मा के चारो ओर
बिखरा है उज्जवल दिप प्रकाश
वहाँ आनन्द की अद्भुत अनुभूति है
रूह पृथक हो जाती है
उसी दिव्य को पाने के लिए
फिर क्यों छटपटाती
पुनः देह में बँध जाने के लिए
सुना है रूह मरती नहीं
बदल देती है देह
देह के पिंजर में
क्यों कैद होती है रूह
बार-बार बारम्बार
रूह की अनन्त प्यास
जज्बातों को समझे जाने की
छल और देह से परे
सिर्फ और सिर्फ
प्रेम सम्मान पाने की
अमिट प्यास की खातिर
वह आती रहेगी बार-बार बारम्बार
*ऋता शेखर ‘मधु’*
खूबसूरत दास्तान देह की और रूह की , बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (02-04-2016) को "फर्ज और कर्ज" (चर्चा अंक-2300) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मूर्ख दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंरूह की अनन्त प्यास
जवाब देंहटाएंजज्बातों को समझे जाने की
छल और देह से परे
सिर्फ और सिर्फ
प्रेम सम्मान पाने की
अमिट प्यास की खातिर
वह आती रहेगी बार-बार बारम्बार
वाह दी उम्दा रचना :) शुभ संध्या jsk