ले आजादी की मशाल
वे झूमते गाते चले
कफ़न बाँधकर अपने सर
शान से मुस्काते चले
बाजुओं में जोश था
रक्त में थी रवानगी
भारत माँ के वंदन की
भरी हुई थी दीवानगी
केसरिया से तन मन रँग
विजय ध्वज लहराते चले
माँ की गोदी त्याग दिए
फाँसी का फँद हार बना
इन सपूतों की शहादत
जन जन पर आभार बना
अँग्रेजी लाठी टूटी
वे हुँकार गुँजाते चले
मिला हमें आजाद गगन
सुवासित हुई जहाँ पवन
रग रग में हो देशप्रेम
मिटा सके ना जिसे थकन
हम सब भारतवासी बन
भेद-भाव भुलाते चलें
*ऋता शेखर 'मधु'*
आपकी लिखी रचना " पांच लिंकों का आनन्द " पर कल रविवार 20 मार्च 2016 को http://www.halchalwith5links.blogspot.in पर लिंक की जाएगी । आप भी आइएगा
जवाब देंहटाएंआभार विक्रम जी !
हटाएंशुक्रिया उपासना जी !
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