बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

क्षणिकाएँ



१.
सदा निभाए साथ तुम्हारा
खाकर अनगिन ठोकर
संस्कार की जड़ गहरी थी
रहे तुम्हारे होकर|
२.
डैने कमजोर थे
निरीह था फाख्ता
मन का मजबूत था
उड़ा बे-साख्ता|
३.
नन्ही अँगुली थामकर
सिखाया आखर-घट खोलना
वही सिखाता शिद्दत से अब
‘मम्मा, तुम ऐसे बोलना|”
४.
बात सच्ची थी
बात अच्छी थी
झूठ की दहलीज पर
गिर पड़ी भरभराकर
पक्की बात की
प्रस्तुति शायद कच्ची थी|
५.
झनके कँगना
मेहदी भी न छूटी
लीप रही अँगना
६.
सरल व्यक्तित्व
मोहक मुस्कान
सात वचन के घेरे में
भरती सिसकी
खोता अस्तित्व|
७.
निष्कंप थी लौ
दृढ़ विश्वास संग
कुछ यूँ जली
आँधियों की कोशिश
नाकाम कर गई।
८.
क्यूँ कभी-कभी
निर्दोष होकर भी
खुद को पाते
कटघरे में स्तब्ध
बन जाते निःशब्द|
९.
वो मुहब्बत थी
या हृदय की पीर
शब्दों के साँचे में
ग़ज़ल बन गई
कवि-दिल की ‘आह’
पाठकों की ‘वाह’ बन गई|
१०.
मेरी बात उसकी बात
गप्प में रहती सबकी बात
वो झूठा मैं सच्चा हूँ
इसी में होती दिन से रात
--ऋता शेखर 'मधु'

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 18 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-02-2016 को वैकल्पिक चर्चा मंच पर दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. बहुत खूब, पढ़कर गुलज़ार जी कि त्रिवेणी कि हलकी हलकी यादें ताज़ा हो गई
    Hindi Shayari

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