चित्र गूगल से साभार
2122 1212 22
क्वाफ़ी-आ/ रदीफ-जाने
रुख़ की बातें तो बस हवा जाने
हर दुआ को वही खुदा जाने
जो लगी ना बुझी जमाने में
इश्क की दास्ताँ वफ़ा जाने
ख़ाक में मिल रहे जनाज़े जो
क्यों नहीं दे रहे पता जाने
नेक जो भी रहे इरादों में
बाद में खुद की ही ख़ता जाने
अक्स मिलते रहेंगे किरचों में
टूट के राज आइना जाने
वक्त का करवटी इशारा था
आज तिनकों में आसरा जाने
जो रखे है गुरूर चालों में
है मुसाफ़िर वो गुमशुदा जाने
हौसले में जुनून है जिसके
गुलशनी राह खुशनुमा जाने
ख्वाब में भी वही नजर आए
दिल को क्या हो गया खुदा जाने
--ऋता शेखर ‘मधु’
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 14 फरवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी कमाल की है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गज़ल
जवाब देंहटाएंग़ज़ल का हर शेर पूर्णतः लिये हुए है. ज़िंदगी के अहसासों को कशिश भरे लफ़्ज़ों में तरन्नुम से भर देना ही ग़ज़ल की सार्थकता है. पठनीय,संग्रहणीय रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंग़ज़ल का हर शेर पूर्णतः लिये हुए है. ज़िंदगी के अहसासों को कशिश भरे लफ़्ज़ों में तरन्नुम से भर देना ही ग़ज़ल की सार्थकता है. पठनीय,संग्रहणीय रचना. बधाई.
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