कलकल नदिया है बही, छमछम चली बयार |
गिरिराज हैं अटल खड़े, लिए गगन विस्तार ||
लिए गगन विस्तार, हरी वसुधा मुस्काई ,
दूर्वा पर की ओस, धूप देख कुम्हलाई ||
तितली मधु को देख, मटक जाती है हरपल ,
छमछम चली बयार, बही है नदिया कलकल ||
गरिमा बढ़ती कार्य से, होता है गुणगान |
जग में सूरज चाँद सम, मिले सदा सम्मान||
मिले सदा सम्मान, नाम जग में होता है,
करते जो आलस्य, स्वप्न उनका खोता है |
ऋता करे स्वीकार, सतत प्रयत्न की महिमा,
होता गुणगान, कार्य से बढ़ती गरिमा ||
मन मन्दिर में शोभते, शिव सम सरल विचार |
सुधा-कलश को बाँटकर, गरल करें स्वीकार ||
गरल करें स्वीकार, जगत रौशन कर जाएँ ,
शीतल विल्व समान, मनः संताप मिटाएँ ||
मधु फूलों के बाग, सोहते ऋतु मगसिर में ,
शिव सम सरल विचार, शोभते मन मन्दिर में||
क्रंदन दिल को चीर कर, ढूँढे दृग की राह |
जाने टूटे स्वप्न हैं, या दरकी है चाह ||
या दरकी है चाह, व्यंग्य की सुन सुन बातें ,
मन को देतीं दंश, विरह की काली रातें ||
रजत किरण की धार, रोम को देतीं स्पंदन,
मनभावन वह चंद्र, सोखता दिल का क्रंदन||
संबोधन के शब्द में, होते गहरे राज|
कर्कश, नम्र, विनीत या, कहीं दिखाते नाज ||
कहीं दिखाते नाज, कुसुम बन कर सजते हैं,
सही बँधे जब तार , सप्तसुर ही बजते हैं |
'मधु' ये रखना ध्यान, कर्णप्रिय हो उद्बोधन,
होगी अच्छी सोच, मधुर होंगे संबोधन||
--ऋता शेखर 'मधु'
गिरिराज हैं अटल खड़े, लिए गगन विस्तार ||
लिए गगन विस्तार, हरी वसुधा मुस्काई ,
दूर्वा पर की ओस, धूप देख कुम्हलाई ||
तितली मधु को देख, मटक जाती है हरपल ,
छमछम चली बयार, बही है नदिया कलकल ||
गरिमा बढ़ती कार्य से, होता है गुणगान |
जग में सूरज चाँद सम, मिले सदा सम्मान||
मिले सदा सम्मान, नाम जग में होता है,
करते जो आलस्य, स्वप्न उनका खोता है |
ऋता करे स्वीकार, सतत प्रयत्न की महिमा,
होता गुणगान, कार्य से बढ़ती गरिमा ||
मन मन्दिर में शोभते, शिव सम सरल विचार |
सुधा-कलश को बाँटकर, गरल करें स्वीकार ||
गरल करें स्वीकार, जगत रौशन कर जाएँ ,
शीतल विल्व समान, मनः संताप मिटाएँ ||
मधु फूलों के बाग, सोहते ऋतु मगसिर में ,
शिव सम सरल विचार, शोभते मन मन्दिर में||
क्रंदन दिल को चीर कर, ढूँढे दृग की राह |
जाने टूटे स्वप्न हैं, या दरकी है चाह ||
या दरकी है चाह, व्यंग्य की सुन सुन बातें ,
मन को देतीं दंश, विरह की काली रातें ||
रजत किरण की धार, रोम को देतीं स्पंदन,
मनभावन वह चंद्र, सोखता दिल का क्रंदन||
संबोधन के शब्द में, होते गहरे राज|
कर्कश, नम्र, विनीत या, कहीं दिखाते नाज ||
कहीं दिखाते नाज, कुसुम बन कर सजते हैं,
सही बँधे जब तार , सप्तसुर ही बजते हैं |
'मधु' ये रखना ध्यान, कर्णप्रिय हो उद्बोधन,
होगी अच्छी सोच, मधुर होंगे संबोधन||
--ऋता शेखर 'मधु'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-12-2018) को "कल हो जाता आज पुराना" (चर्चा अंक-3180) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह
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