कैसा मिला है साथ
शीतल उष्ण मिल गए
जैसे तुम और हम
चक्र घूम कर बता रहा
कभी खुशी या गम
जो पिघला वह ठोस हुआ
जीवन अनबुझ राज
पतझर की लीला बड़ी
बजा बसन्त का साज
सूर्य बिना वह कुछ नहीं
चँदा का मन जान रहा
कहाँ तपन घट जाएगी
सूरज को भी भान रहा
एक दूजे बिन हैं अधूरे
पर मिलन की राह नहीं
अवनी अम्बर को देखो
क्षितिज की है थाह नहीं
विभा दिनकर मिलें कहाँ
सन्ध्या ने यह तय किया
आस निराश के मध्य जमी
आस्था ने सब कुछ जय किया
प्रीत मीत की हुई शाश्वत
बिना मिले दो तृप्त हुए
राधा कान्हा दूर दूर
प्रेम रूप संक्षिप्त हुए
जैसे तुम और हम
चक्र घूम कर बता रहा
कभी खुशी या गम
जो पिघला वह ठोस हुआ
जीवन अनबुझ राज
पतझर की लीला बड़ी
बजा बसन्त का साज
सूर्य बिना वह कुछ नहीं
चँदा का मन जान रहा
कहाँ तपन घट जाएगी
सूरज को भी भान रहा
एक दूजे बिन हैं अधूरे
पर मिलन की राह नहीं
अवनी अम्बर को देखो
क्षितिज की है थाह नहीं
विभा दिनकर मिलें कहाँ
सन्ध्या ने यह तय किया
आस निराश के मध्य जमी
आस्था ने सब कुछ जय किया
प्रीत मीत की हुई शाश्वत
बिना मिले दो तृप्त हुए
राधा कान्हा दूर दूर
प्रेम रूप संक्षिप्त हुए
कैसा मिला है साथ
मिले, पर हुए न पूरे
बना रहा अहसास
एक दूजे बिन हैं अधूरे
-ऋता शेखर 'मधु'
सभी बहनों सखियों को करवा चौथ की मंगलकामनाएं!! 🌹🌹🌝🌹🌹
-ऋता शेखर 'मधु'
सभी बहनों सखियों को करवा चौथ की मंगलकामनाएं!! 🌹🌹🌝🌹🌹
बहुत खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंदूर दूर पर पास पास।
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है 👉👉 लोग बोले है बुरा लगता है
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंक्या बात है सुंदर .....
जवाब देंहटाएंराधा कान्हा दूर दूर
जवाब देंहटाएंप्रेम रूप संक्षिप्त हुए
कैसा मिला है साथ
मिले, पर हुए न पूरे
जीवन इसी का नाम है, सादर ...
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