शीर्षक: उसे क्यों नहीं
एक ही महानगर में दोनों भाई-बहन अलग अलग घरों में रहते हुए अपनी अपनी नौकरियों में व्यस्त थे। भाई के पास माँ कुछ दिनों के लिए आई थी। वीकेंड में माँ ने बेटी के यहाँ जाने का मन बनाया था। सरप्राइज़ देने के ख्याल से वह बेटे के साथ सुबह सुबह पहुँचीं। घर की एक चाबी भाई के पास भी रहती थी। बिना डोर बेल बजाए वे दरवाजा खोलकर अन्दर घुसे। अन्दर आते ही सिगरेट की तेज गन्ध नाक में प्रवेश कर गयी।
यहाँ कौन सिगरेट पीता होगा, यह सोचती हुई वह और अंदर गयीं तो देखते ही उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। बालकनी में खड़ी बिटिया धकाधक सिगरेट के धुएँ के छल्ले उड़ा रही थी। महानगर में रहने वाली लड़कियाँ सिगरेट पीने से परहेज नहीं करतीं यह सुना तो था पर अपनी ही बेटी को यह करते देखने की कल्पना भी न की थी माँ ने।
"यह क्या, तुम सिगरेट पीती हो?" अचानक ही बोल पड़ीं।
"अरे माँ,आप कब आईं? और आने से पहले बताया भी नहीं।"
"बता कर आते तो तुम्हारा यह रूप कैसे देखते?"
"कौन सा रूप भाई?"
"यही, जो तुम कर रही थी।"
"अच्छा भैया, क्या तुम सिगरेट नहीं पीते। हमने तो कभी मना नहीं किया।"
"चुप रह, यह क्या लड़कियों को शोभा देता है।" अब माँ बोल पड़ी।
" माँ, आप कब से लड़का लड़की में भेद करने लगीं। भाई को तो कभी मना नहीं किया, मुझे क्यों...लड़की हूँ इसलिए न।"
निरुत्तर सी खड़ी माँ को देखकर भाई ने सिगरेट का डब्बा निकाला और माँ के हाथों में रखते हुए बोला," बहन सच कह रही माँ। जो वर्जना लड़की के लिए है वह लड़कों के लिए भी तो होनी चाहिए।आज से मैं इसे छोड़ता हूँ।"
"मैं भी," कहते हुए बहन ने भी अपना डब्बा माँ को दे दिया।
दोनों बच्चों को गले से लगाकर माँ कुछ देर खड़ी रही।
अब भी कुछ तो शेष था जिसके कारण दोनों ने पालन पोषण का मान रख लिया था।
@ऋता शेखर 'मधु'
एक ही महानगर में दोनों भाई-बहन अलग अलग घरों में रहते हुए अपनी अपनी नौकरियों में व्यस्त थे। भाई के पास माँ कुछ दिनों के लिए आई थी। वीकेंड में माँ ने बेटी के यहाँ जाने का मन बनाया था। सरप्राइज़ देने के ख्याल से वह बेटे के साथ सुबह सुबह पहुँचीं। घर की एक चाबी भाई के पास भी रहती थी। बिना डोर बेल बजाए वे दरवाजा खोलकर अन्दर घुसे। अन्दर आते ही सिगरेट की तेज गन्ध नाक में प्रवेश कर गयी।
यहाँ कौन सिगरेट पीता होगा, यह सोचती हुई वह और अंदर गयीं तो देखते ही उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। बालकनी में खड़ी बिटिया धकाधक सिगरेट के धुएँ के छल्ले उड़ा रही थी। महानगर में रहने वाली लड़कियाँ सिगरेट पीने से परहेज नहीं करतीं यह सुना तो था पर अपनी ही बेटी को यह करते देखने की कल्पना भी न की थी माँ ने।
"यह क्या, तुम सिगरेट पीती हो?" अचानक ही बोल पड़ीं।
"अरे माँ,आप कब आईं? और आने से पहले बताया भी नहीं।"
"बता कर आते तो तुम्हारा यह रूप कैसे देखते?"
"कौन सा रूप भाई?"
"यही, जो तुम कर रही थी।"
"अच्छा भैया, क्या तुम सिगरेट नहीं पीते। हमने तो कभी मना नहीं किया।"
"चुप रह, यह क्या लड़कियों को शोभा देता है।" अब माँ बोल पड़ी।
" माँ, आप कब से लड़का लड़की में भेद करने लगीं। भाई को तो कभी मना नहीं किया, मुझे क्यों...लड़की हूँ इसलिए न।"
निरुत्तर सी खड़ी माँ को देखकर भाई ने सिगरेट का डब्बा निकाला और माँ के हाथों में रखते हुए बोला," बहन सच कह रही माँ। जो वर्जना लड़की के लिए है वह लड़कों के लिए भी तो होनी चाहिए।आज से मैं इसे छोड़ता हूँ।"
"मैं भी," कहते हुए बहन ने भी अपना डब्बा माँ को दे दिया।
दोनों बच्चों को गले से लगाकर माँ कुछ देर खड़ी रही।
अब भी कुछ तो शेष था जिसके कारण दोनों ने पालन पोषण का मान रख लिया था।
@ऋता शेखर 'मधु'
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