दोहे तेइस प्रकार के होते हैं...पिछले पोस्ट में तीन प्रकार के दोहे प्रकाशित हैं|
4- श्येन दोहा19 गुरु और 10 लघु वर्ण
22 2 11 2 12 ,22 2 2 21
2 2 12 121 2, 222 1121
भोले फूल समेटते, प्यारी- प्यारी गंध।
ज्यों ही हवा चली वहाँ, टूटे हैं अनुबंध।।1
यादों की परछाइयाँ, यादों की है धूप।
चाहे रहे स्वरूप जो, भाते हैं हर रूप।।2
अच्छे राजन का सदा, होता है सम्मान।
साथी रही प्रजा जहाँ,होता देश महान।।3
दोनों ही उलझे रहे, लम्बाई को तान।
क्यों एक से लगे हमें, धागे और जुबान।।4
चारों ओर चली हवा, बागों में है शोर।
देखो उन्हें लुभा रही, जो जागे अति भोर।।5
टूटे पात जुड़ें नहीं, ऐसी ही है रीत।
साथी कभी न तोड़ना, रिश्तों वाली प्रीत।।6
--ऋता शेखर मधु
5.मण्डूक दोहा-
18 गुरु 12 लघु=48
112112212,1212221
22112212, 222221
जग में अपना कौन है, हुआ पराया कौन।
काँधे रख दे हाथ जो, या हो जाए मौन।।
मन निश्छल निष्पाप हो, तभी झुकाओ शीश।
जैसी जिसकी सोच हो, वैसा देते ईश।।
गुलमोहर के फूल ने, सदा सिखाई बात।
जो भी सह ले धूप को, संजोता औकात।।
--ऋता शेखर 'मधु'
6.मर्कट दोहा
17 गुरु 14 लघु=48
112211212,222221
112121212,2221121
जल ही जीवन का सदा, होता है आधार।
हर बूँद जो सहेज लें, लौटेगी जलधार।।1
मन को भावन से लगे, बंजारों के गीत।
लगता उन्हें पुकारते, जो खोए घर मीत।।2
जग में सुन्दर नाम हैं, या कृष्णा या राम।
दृग ढूँढते रहे उन्हें, घूमे थे जब धाम।।3
रवि डूबे जब झील में, सोये सारी रात।
मिलती हमें निशा सखी, होती जी भर बात।।4
बगिया में कलियाँ खिलीं, बासंती है राग।
मन बावरा उड़ा फिरे, ढूँढे ढोलक फाग।।5
-ऋता शेखर 'मधु'
7.करभ दोहा-
16 गुरु 16 लघु=48
112211212,21121121
12122212,1212221
पथ आसान मिले किसे, कौन रहे निष्पात।
इसे लिखा है ईश ने, हमें कहाँ है ज्ञात।।
पुरवाई चलने लगी, शीतल है अहसास।
छुईमुई सी पाँखुड़ी, भरे अनोखी आस।।
मत काटो उस पंख को, जो लिखते अरमान।
जहाँ पली हैं बेटियाँ, वहाँ बढ़ी है शान।।
घर आये ऋतुराज हैं, लेकर पुष्प हजार।
रचो सदा माँ शारदे, सुज्ञान का संसार।।
तन पीले परिधान से, आज सजा लो मीत।
उड़े परागी रंग हैं, रिझा रही है प्रीत।।
-ऋता शेखर 'मधु'
साथी कभी न तोड़ना, रिश्तों वाली प्रीत।।6
--ऋता शेखर मधु
5.मण्डूक दोहा-
18 गुरु 12 लघु=48
112112212,1212221
22112212, 222221
जग में अपना कौन है, हुआ पराया कौन।
काँधे रख दे हाथ जो, या हो जाए मौन।।
मन निश्छल निष्पाप हो, तभी झुकाओ शीश।
जैसी जिसकी सोच हो, वैसा देते ईश।।
गुलमोहर के फूल ने, सदा सिखाई बात।
जो भी सह ले धूप को, संजोता औकात।।
--ऋता शेखर 'मधु'
6.मर्कट दोहा
17 गुरु 14 लघु=48
112211212,222221
112121212,2221121
जल ही जीवन का सदा, होता है आधार।
हर बूँद जो सहेज लें, लौटेगी जलधार।।1
मन को भावन से लगे, बंजारों के गीत।
लगता उन्हें पुकारते, जो खोए घर मीत।।2
जग में सुन्दर नाम हैं, या कृष्णा या राम।
दृग ढूँढते रहे उन्हें, घूमे थे जब धाम।।3
रवि डूबे जब झील में, सोये सारी रात।
मिलती हमें निशा सखी, होती जी भर बात।।4
बगिया में कलियाँ खिलीं, बासंती है राग।
मन बावरा उड़ा फिरे, ढूँढे ढोलक फाग।।5
-ऋता शेखर 'मधु'
7.करभ दोहा-
16 गुरु 16 लघु=48
112211212,21121121
12122212,1212221
पथ आसान मिले किसे, कौन रहे निष्पात।
इसे लिखा है ईश ने, हमें कहाँ है ज्ञात।।
पुरवाई चलने लगी, शीतल है अहसास।
छुईमुई सी पाँखुड़ी, भरे अनोखी आस।।
मत काटो उस पंख को, जो लिखते अरमान।
जहाँ पली हैं बेटियाँ, वहाँ बढ़ी है शान।।
घर आये ऋतुराज हैं, लेकर पुष्प हजार।
रचो सदा माँ शारदे, सुज्ञान का संसार।।
तन पीले परिधान से, आज सजा लो मीत।
उड़े परागी रंग हैं, रिझा रही है प्रीत।।
-ऋता शेखर 'मधु'
लाजवाब
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय|
हटाएं