शुक्रवार, 20 मई 2022

कुछ हो अनूठा कुछ नवल हो

हरिगीतिका छंद- 
मात्रा विधान- २२१ २२२ १२२(१६), २१ २२२ १२(१२) 
दो-दो पंक्तियाँ तुकांत 

 कविमन सृजन में तब लगे जब, शब्द का शृंगार हो। 
कुछ हो अनूठा कुछ नवल हो, भाव में कुछ सार हो।। 
आरम्भ हो सुन्दर सुरीला, रागिनी उर में बजे। 
भारत वतन के ही लिए तो, लेखनी में धुन सजे।।1 

 हर साधना में गीत सारे, प्रीत के सुर में ढलें | 
धागा रहें या मंजरी हों, संग ले सबको चलें || 
संसार की राहें कठिन हैं, है न मंजिल का पता | 
हे ईश ! तुझसे पूछते हैं, तू इसे हमको बता ||२ 

 पर्यावरण था शुद्ध पावन, जो विरासत में मिला | 
नुकसान सबने ही किया है, फिर करें किससे गिला || 
शुरुआत भी हम ही करेंगे, सृष्टि के शॄंगार का | 
जो खो गया वह लौट आये, गीत रच मनुहार का ||३ 
 
जब भोर से वसुधा मिले तब, यह नवल आगाज़ है | 
उल्लास से सुरभित गगन में, अनकही परवाज़ है || 
बगिया सुगंधित पुष्प से है, गूँजती किलकारियाँ | 
हर ओर जीने की ललक है, भर गईं पिचकारियाँ ||४ 

 दिन यूँ निकलता ही रहे अब, ख्वाहिशें ये हैं बड़ी | 
बन के अटल है पग बढ़ाना, जब कभी बाधा अड़ी || 
पतवार साहस की लिए हम, राह में आगे बढ़ें | 
संसार को हम जीत लेंगे, सोच को मन में मढ़ें ||५ 

==ऋता शेखर ‘मधु’

8 टिप्‍पणियां:

  1. लम्बे समयान्तराल पर एक सुन्दर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 25 मई 2022 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह .... हरिगीतिका छंद में खूबसूरत भाव भरे हैं ।बहुत खूब ।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियाँ उत्साहवर्धन करती है...कृपया इससे वंचित न करें...आभार !!!