माता-पिता वृद्ध हुए, पुत्र समंदर-पार
बना आज दस्तूर यही, छिन जाता आधार|
बरगद की छाया बने, छौने पर दिन-रात
कुलाँचे भर भाग चला, भूला ममता-प्यार|
बूढ़ी काया है विकल, लगी द्वार पर आँख
कुल-दीपक के वास्ते, देखे पंथ निहार|
दूजा धन लागे भला, खरच किया बिन मोह
निज- धन पर गाँठ सत्तर, माया मोह अपार|
तन्हा राहों पर मिले, चन्द कदम का साथ
बिन अहं के साथ चलो, यह जीवन का सार|
ऋता शेखर ‘मधु’
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,
तन्हा राहों पर मिले, चन्द कदम का साथ
जवाब देंहटाएंबिन अहं के साथ चलो, यह जीवन का सार|
बहुत सुंदर पंक्तियाँ रची हैं.....
बहुत सुन्दर ऋता जी....
जवाब देंहटाएंआत्मसात कर लिए सभी दोहे..
सस्नेह
अनु
तन्हा राहों पर मिले, चन्द कदम का साथ
जवाब देंहटाएंबिन अहं के साथ चलो, यह जीवन का सार|
बहुत ही बढिया ।
मर्म स्पर्शी -
जवाब देंहटाएंजैसे मेरे लिए है -
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (08-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत आभार शास्त्री सर !!
हटाएंतन्हा राहों पर मिले, चन्द कदम का साथ
जवाब देंहटाएंबिन अहं के साथ चलो, यह जीवन का सार|
सही कहा आपने..
बहुत बढ़िया रचना,...
:-)
जवाब देंहटाएंबूढ़ी काया है विकल, लगी द्वार पर आँख
कुल-दीपक के वास्ते, देखे पंथ निहार|
नै प्रयोग भूमि खंगाली है ,दोहा गजल रुदाली है .
शुक्रवार, 7 सितम्बर 2012
शब्दार्थ ,व्याप्ति और विस्तार :काइरोप्रेक्टिक
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबिन अहं के साथ चलना
कितना मुश्किल हो जाता है
चारों और अहं का झंडा
जब लहराता है
खुदद का सोया अहं ऎसे
में उठ के जाग जाता है !
बहुत मनभावन दोहे..
जवाब देंहटाएंबूढ़ी काया है विकल, लगी द्वार पर आँख
जवाब देंहटाएंकुल-दीपक के वास्ते, देखे पंथ निहार..
सच है ... ऑंखें तो माँ बाप की द्वार पे ही लगी रहती हैं ... पर कई बार कुल दीपक मद में भूल जाते हैं ... सार्थक लेखन ...