ठनी लड़ाई
आज मेरी गणपति की सवारी के साथ ठन गई| गणपति के सामने लड्डुओं से भरा थाल रखा
था| उन लड्डुओं पर भक्त होने के नाते मैं अपना अधिकार समझ रही थी और वह मूषक
अपना...आखिर गणेश का प्रिय जो था| मेहनत की कमाई से लाए लड्डुओं को लुचकने के लिए
वह तैयार बैठा था| चूहों की तरह कान खडे करके गोल-गोल आँखें मटकाता दूर से ही वह
सतर्क था कि मैं कब अपनी आँखें बन्द करके ध्यान में डूबूँ और वह लड्डुओं पर हाथ
साफ करे| मैं भी कब दोनों आँखें बन्द करने वाली थी| एक आँख बन्द करके गणेश जी को
खुश किया और दूसरी आँख खुली रखकर चूहे पर नजर रखी| किन्तु ये भी कोई पूजा हुई
भला...देवता से ज्यादा ध्यान चूहे पर!
पल भर के लिए सीन बदल गया| थाल में लड्डुओं की जगह मेहनत की कमाई दिख रही थी
और चूहे में वह भ्रष्टाचारी जो एरियर का बिल बनाने के लिए पैसों पर नजर जमाए बैठा
था| फिर तो मैंने भी ठान लिया...उस चूहे को एक भी लड्डू नहीं लेने दूँगी|
ऋता शेखर ‘मधु’
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएं:):) बढ़िया है .... काश सब भ्रष्टाचारी रूपी चूहे पर नज़र रखें ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएंAdd Happy Diwali Greetings to your blog - मित्रों को शुभ दीपावली बधाइयाँ दीजिए
:)...मुझे तो दो लड्डू
जवाब देंहटाएंदी, आपके लड्डू थाल में रखे हैं:)
हटाएं:-)
जवाब देंहटाएंविजयी भव!!
सस्नेह
अनु
छोटी सी कहानी बड़ा सा सुझाव....
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट....
:-)
बहुत बढ़िया..सटीक आलेख.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति,,,,,,
जवाब देंहटाएंजी बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंक्या कहने
.... फिर तो मैंने भी ठान लिया...उस चूहे को एक भी लड्डू नहीं लेने दूँगी|
जवाब देंहटाएंयही संकल्प लेने की जरूरत है
:) वाह क्या बात है ...
जवाब देंहटाएंbhrashtachar kaha kahan tak..sundar rachna.
जवाब देंहटाएंशुरूआत चूहे से ही करना ठीक। शेर तक पहुंचने का साहस वहीं से पैदा हो सकता है।
जवाब देंहटाएंशुरूआत चूहे से ही करना ठीक। शेर तक पहुंचने का साहस वहीं से पैदा होता है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शास्त्री सर...सादर आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंजना .बढ़िया रूपक चूहे का .
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंजना .बढ़िया रूपक चूहे का .
जवाब देंहटाएंठनी लड़ाई
आज मेरी गणपति की सवारी के साथ ठन गई| गणपति के सामने लड्डुओं से भरा थाल रखा था| उन लड्डुओं पर भक्त होने के नाते मैं अपना अधिकार समझ रही थी और वह मूषक अपना...आखिर गणेश का प्रिय जो था| मेहनत की कमाई से लाए लड्डुओं को लुचकने के लिए वह तैयार बैठा था| चूहों की तरह कान खडे करके गोल-गोल आँखें मटकाता दूर से ही वह सतर्क था कि मैं कब अपनी आँखें बन्द करके ध्यान में डूबूँ और वह लड्डुओं पर हाथ साफ करे| मैं भी कब दोनों आँखें बन्द करने वाली थी| एक आँख बन्द करके गणेश जी को खुश किया और दूसरी आँख खुली रखकर चूहे पर नजर रखी| किन्तु ये भी कोई पूजा हुई भला...देवता से ज्यादा ध्यान चूहे पर!
पल भर के लिए सीन बदल गया| थाल में लड्डुओं की जगह मेहनत की कमाई दिख रही थी और चूहे में वह भ्रष्टाचारी जो एरियर का बिल बनाने के लिए पैसों पर नजर जमाए बैठा था| फिर तो मैंने भी ठान लिया...उस चूहे को एक भी लड्डू नहीं लेने दूँगी|
चूहे के माध्यम से सच को दर्शाती आपकी यह पोस्ट अच्छी लगी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंये चूहा तो इन्कोमेताक्स काट रहा था. उसे रोकना ठीक नहीं नहीं तो गणेश जी नाराज़ हो या ना हों चिदंबरम साहब जरुर नाराज हो जायेंगे.
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