एक लड़की थी जिसका चुप-चुप सा चेहरा मुझे बहुत आकर्षित करता था|ऐसा लगता था
जैसे सबके बीच होकर भी वह वहाँ पर नहीं है|अपने बारे में वह बातें भी नहीं करती
थी| बाद में पता चला कि हैवान पति के चंगुल से किसी तरह उसकी जान बच पाई थी|उस
वक्त उसके दो बच्चे थे जो दो और तीन साल के थे|बच्चों के लिए वह नौकरी कर रही थी| उस
लड़की के सामने पहाड़ सी ज़िन्दगी पड़ी थी|उसके घर वाले चाहते थे कि वह दूसरी शादी
कर ले किन्तु वह नहीं मानी|
घर आने पर मैंने उस लड़की को केन्द्र में रखकर एक कविता लिखी और उसे पर्स में
रख लिया|दो दिनों बाद ऐसा संयोग लगा कि वह मेरे पास ही बैठी थी|मैंने उसे बताया कि
मैं थोड़ा बहुत अपनी कलम चलाती रहती हूँ और इंटरनेट पर डालती हूँ|
मैंने उससे कहा कि मैंने एक नई कविता लिखी है,जरा पढ़कर बताओ कैसी बनी है|
यह कहकर मैंने उसे वह कागज पकड़ा दिया|मैं लगातार उसे देख रही थी क्योंकि मैं
उसकी प्रतिक्रिया जानना चाहती थी|वह पढ़ने लगी...
नारी
सीधी लौ बनी
गर्व से तनी
स्थिरता से
तिल तिल कर जलती रही
रौशनियाँ लुटाती रही
आँधियों को आना था
आकर गुजर गईं
मद्धिम होती लौ को
अपने ही बलबूते
संभालती रही
पर जलती रही|
आँधियों की कसक लिए
लौ ने फिर से सर उठाया
रौशनी को तेज बनाया
मौसम बदले
हालात बदले
ख़यालात बदले
उपमा मिली
अडिग पर्वत की
उस पर्वत के भीतर झाँको
क्या कह रहा है वह
इसे तो आँको
कण-कण में बिखरा
सिर्फ धूल है वह
शौर्य के सूरज से पूछो
कितनी निराश किरणों को
झेला है उसने
खिले बसंत से पूछो
पतझर की पीड़ा भी
दबी मिलेगी
बहती नदी से पूछो
रोड़े पत्थरों से गुजरती
कितनी लहुलुहान है वो
खिलखिलाते वन उपवन से पूछो
कैक्टसों को भी पाला है उसने|
जीवन में कभी घबड़ाना नहीं
जिन्हें जीने का मकसद बनाया
बस उनके लिए ही जीती जाओ
दुनिया के लिए तुम ‘टफ’ हो
पर मैं जानती हूँ
तुम ‘टफ़’ नहीं हो
क्योंकि, तुम एक नारी हो
क्योंकि, तुम एक माँ हो|
उसकी आँखों से टपकते आँसुओं ने मेरी पूरी कविता ही धो डाली थी|मैंने धीरे से
उसके कंधे पर हाथ रखा और हमारे बीच एक रिश्ता बन गया|अब बहुत सारी बातें हैं जो वह
मुझसे शेयर करती है| एक दिन मैंने उससे पूछा ...तुमने दूसरी शादी क्यों
नहीं की|
‘दीदी,
इससे मेरी जिन्दगी तो सँवर जाती पर बच्चों से उनकी माँ छिन जाती’’...फिर मैंने कुछ नहीं
कहा...शायद वह सही थी|
ऋता शेखर ‘मधु’
जिन्हें जीने का मकसद बनाया
जवाब देंहटाएंबस उनके लिए ही जीती जाओ
क्यूंकि अपने इतनी आसानी से नहीं मिलते
माँ हो जाने बाद शायद हर स्त्री बच्चों को सबसे पहले ही रखती है.... बच्चों की ख़ुशी में ही सुखी .
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना...
जवाब देंहटाएंइसे रचना कहना शायद गुस्ताखी होगी....
मन भीग गया पढ़ कर...
सस्नेह
अनु
उम्दा पोस्ट |
जवाब देंहटाएंआज की सच्चाई...एक-एक पंक्ति गहरे भाव लिए हुए...
आखिरी की पंक्तियाँ तो निशब्द करती हुई |
इतनी सुन्दर रचना है की बस कोई शब्द नहीं रह गए हैं सराहना करने के लिए
जवाब देंहटाएंउसकी ज़िन्दगी संवरती- कहना मुश्किल है,पर अपने बच्चों के लिए वह मील का पत्थर बनी. तुमने सहनशीलता से रिश्ता बनाया - यही उसका प्राप्य है. दर्द के साथ भीड़ नहीं होती, पर अनुकरणीय निशां होते हैं उसके साथ
जवाब देंहटाएंमन भीग गया..बहुत भावुक करती रचना...
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं स्वाभिमान से जीना. अत्यंत मार्मिक और भावुक कर देने वाली प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंलाजबाब पंक्तियाँ,,, निशब्द भावुक करती रचना,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: तेरी फितरत के लोग,
खिले बसंत से पूछो
जवाब देंहटाएंपतझर की पीड़ा भी
दबी मिलेगी
बहती नदी से पूछो
रोड़े पत्थरों से गुजरती
कितनी लहुलुहान है वो
बहुत अच्छी उपमाएँ हैं जो व्यक्त कर रही हैं अव्यक्त दर्द को।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अव्यक्त को व्यक्त करती भावभीनी रचना
जवाब देंहटाएंयह रचना मन को गहरे तक छू गयी , उस बच्ची को बधाई, आपका आभार !
जवाब देंहटाएंदीदी, उनकी आँखों के आंसुओं ने ही बता दिया की ये कविता कितनी अनमोल है!!!
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