नवरात्र की पूजा पर बैठी नंदिनी ने मोबाइल बजते ही तत्परता से उठाया और बोल पड़ी,
" हलो, पापा, क्या हुआ है?"
"बेटा,बहुत बहुत बधाई ! तू बुआ बन गयी, काजल की रस्म के लिए यहाँ आने की तैयारी कर।"
" अरे वाह ! आपको भी दादा बनने की बहुत बधाई पापा। भाभी कैसी है और वो दोनों छुटकू किस रूप में अवतरित हुए हैं, ये भी बताइये।"
"एक पुत्ररत्न और एक लक्ष्मी, सोमेश की फ़ैमिली पूरी हो गई। बहुत प्यारा परिवार बन गया नन्दिनी," पापा ने नन्दिनी को जुड़वाँ जन्म लिए बच्चों के बारे में बताया।
" अरे वाह ! पर मैं आपसे नाराज हूँ पापा। आपने नवजात शिशुओं का परिचय ठीक से नहीं दिया|"
"अच्छा, तो यह बता दो क्या ग़लत कहा|"
"पुत्र को गणेश नहीं कहा पर बिटिया को लक्ष्मी कहकर अभी से ही देवी बना दिया आपने। पापा, नवरात्रि के पाठ से यह समझ पा रही हूँ कि स्त्री जीवन स्वयं एक चुनौती है जिसे वह साधारण मानवी के रूप में ही स्वीकार करता है। पढ़ाई, कमाई और सृष्टि निर्माण की शक्ति के समय उसे देवियों के रूप में जाना जा सकता है, पर अभी से क्यो?"
शायद पापा को भी यह बात तर्कसंगत लगी थी तभी पूछे,"तो क्या कहकर परिचय देता"
"पुत्रीरत्न कहना था," कहकर नन्दिनी खिलखिला उठी।
"समझ गया, तू आरती कर देवियों की और फ़ोन जरा दामाद जी को दे।"
नन्दिनी ने स्पीकर ऑन किया तब पति को फोन दिया।
"सोमेश के जुड़वाँ बच्चों के जन्मोत्सव में आप और नन्दिनी आमन्त्रित हैं, अवश्य आइयेगा" पापा ने कहा।
"जी अवश्य, पर शिशुओं के परिचय तो दीजिये पापा जी।"
"एक पुत्ररत्न और एक पुत्रीरत्न",
यह सुनते ही नन्दिनी का चेहरा खिल गया और वह घंटी बजाकर गाने लगी, "जय अम्बे गौरी.....
-ऋता शेखर 'मधु'
" हलो, पापा, क्या हुआ है?"
"बेटा,बहुत बहुत बधाई ! तू बुआ बन गयी, काजल की रस्म के लिए यहाँ आने की तैयारी कर।"
" अरे वाह ! आपको भी दादा बनने की बहुत बधाई पापा। भाभी कैसी है और वो दोनों छुटकू किस रूप में अवतरित हुए हैं, ये भी बताइये।"
"एक पुत्ररत्न और एक लक्ष्मी, सोमेश की फ़ैमिली पूरी हो गई। बहुत प्यारा परिवार बन गया नन्दिनी," पापा ने नन्दिनी को जुड़वाँ जन्म लिए बच्चों के बारे में बताया।
" अरे वाह ! पर मैं आपसे नाराज हूँ पापा। आपने नवजात शिशुओं का परिचय ठीक से नहीं दिया|"
"अच्छा, तो यह बता दो क्या ग़लत कहा|"
"पुत्र को गणेश नहीं कहा पर बिटिया को लक्ष्मी कहकर अभी से ही देवी बना दिया आपने। पापा, नवरात्रि के पाठ से यह समझ पा रही हूँ कि स्त्री जीवन स्वयं एक चुनौती है जिसे वह साधारण मानवी के रूप में ही स्वीकार करता है। पढ़ाई, कमाई और सृष्टि निर्माण की शक्ति के समय उसे देवियों के रूप में जाना जा सकता है, पर अभी से क्यो?"
शायद पापा को भी यह बात तर्कसंगत लगी थी तभी पूछे,"तो क्या कहकर परिचय देता"
"पुत्रीरत्न कहना था," कहकर नन्दिनी खिलखिला उठी।
"समझ गया, तू आरती कर देवियों की और फ़ोन जरा दामाद जी को दे।"
नन्दिनी ने स्पीकर ऑन किया तब पति को फोन दिया।
"सोमेश के जुड़वाँ बच्चों के जन्मोत्सव में आप और नन्दिनी आमन्त्रित हैं, अवश्य आइयेगा" पापा ने कहा।
"जी अवश्य, पर शिशुओं के परिचय तो दीजिये पापा जी।"
"एक पुत्ररत्न और एक पुत्रीरत्न",
यह सुनते ही नन्दिनी का चेहरा खिल गया और वह घंटी बजाकर गाने लगी, "जय अम्बे गौरी.....
-ऋता शेखर 'मधु'
बहुत सुन्दर। रत्नों की बारिश एक साथ :)
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 11/09/2018 की बुलेटिन, स्वामी विवेकानंद के एतिहासिक संबोधन की १२५ वीं वर्षगांठ “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर 👌👌👌
जवाब देंहटाएंसच ही तो है दोनो रत्न ही हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना