लघुकथा....घर
वह बहुत खुश थी...उसने
राधा-कृष्ण की एक पेंटिंग बनाई थी...दौड़ी दौड़ी माँ के पास गई...माँ,इसे ड्रॉइंग
रूम में लगा दूँ...माँ - बेटा इसे तेरी भाभी ने बड़े प्यार से सजाया है...तेरा
पेंटिंग लगाना शायद उसे पसंद आए न आए...तू ऐसा कर, इसे सहेज कर रख...अपने घर में
लगाना|
शादी के बाद...सासू माँ...इस पेंटिंग को ड्रॉइंग रूम में लगा दूँ?...बेटा...जो
जैसा सजा है वैसे ही रहने दो...इसे अपने घर में लगाना|
पति के साथ नौकरी पर...इसे ड्रॉइंग रूम में लगा देती हूँ...
पति-नहीं, अपने बेड रूम में लगाओ या कहीं और...यह मेरा घर
है...मेरी मर्जी से ही सजेगा|
पेंटिंग बक्से में बंद हो गया वापस...आज फिर वह उसी पेंटिंग को
लिए खड़ी थी...बेटे के ड्रॉइंग रूम में...सोच रही थी...क्या यह घर मेरा है?
.................................ऋता
बहुत सुन्दर रही आपकी लघु कथा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विचारणीय लघु कथा ,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
bahut sundar , madhu ji kadava sach , badhai aapko
जवाब देंहटाएंयथार्थ की झर्बेरियाँ हैं इस लघु कथा में। पराधीन सपनेहूँ सुख नाहिं।
जवाब देंहटाएंसच , मेरा घर कहाँ है ?
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
अति सुन्दर तल्ख़ सचाई
जवाब देंहटाएंअक्सर सब कुछ अपना होकर भी कितना पराया सा प्रतीत होता है
जवाब देंहटाएंयही सच्चाई है जिंदगी की
सादर !
behad bhavuk karti huyi kahani …. aksar ladki ke jeevan ka sach aisa hi hota hai
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