आया कहाँ से, जाना कहाँ है...
सुदूर क्षितिज की छाँव में
नभ का पंथी श्रांत क्लांत
अस्ताचल की गोद में
चुपचाप नींद भर सोता है
कलकल नदिया थम चुकी
नीरव संध्या की बेला में
हे ! मनुज, तू नौका पर
किस चिंतन में खोता है
आया कहाँ से, जाना कहाँ है
डूबेगा मझधार में या
किनारे भी मिल जाएँगे
सोच सोच क्यूँ रोता है
जीवन के इस सांध्य में
पंछी नीड़ में दुबक गए
कहीं कोई न दिखे सहारा
क्यूँ शून्य में नयन भिगोता है
बस उसका ही ध्यान कर
मन को न मंझान कर
जो लाया है जगत में
पतवार वही तो खेता है
हम मात्र कठपुतली हैं
हर धागे की पेंच पर
वही नचाता जाता है
हम नाचते जाते हैं|
...ऋता
आया कहाँ से, जाना कहाँ है...
सुदूर क्षितिज की छाँव में
नभ का पंथी श्रांत क्लांत
अस्ताचल की गोद में
चुपचाप नींद भर सोता है
कलकल नदिया थम चुकी
नीरव संध्या की बेला में
हे ! मनुज, तू नौका पर
किस चिंतन में खोता है
आया कहाँ से, जाना कहाँ है
डूबेगा मझधार में या
किनारे भी मिल जाएँगे
सोच सोच क्यूँ रोता है
जीवन के इस सांध्य में
पंछी नीड़ में दुबक गए
कहीं कोई न दिखे सहारा
क्यूँ शून्य में नयन भिगोता है
बस उसका ही ध्यान कर
मन को न मंझान कर
जो लाया है जगत में
पतवार वही तो खेता है
हम मात्र कठपुतली हैं
हर धागे की पेंच पर
वही नचाता जाता है
हम नाचते जाते हैं|
...ऋता
सुदूर क्षितिज की छाँव में
नभ का पंथी श्रांत क्लांत
अस्ताचल की गोद में
चुपचाप नींद भर सोता है
कलकल नदिया थम चुकी
नीरव संध्या की बेला में
हे ! मनुज, तू नौका पर
किस चिंतन में खोता है
आया कहाँ से, जाना कहाँ है
डूबेगा मझधार में या
किनारे भी मिल जाएँगे
सोच सोच क्यूँ रोता है
जीवन के इस सांध्य में
पंछी नीड़ में दुबक गए
कहीं कोई न दिखे सहारा
क्यूँ शून्य में नयन भिगोता है
बस उसका ही ध्यान कर
मन को न मंझान कर
जो लाया है जगत में
पतवार वही तो खेता है
हम मात्र कठपुतली हैं
हर धागे की पेंच पर
वही नचाता जाता है
हम नाचते जाते हैं|
...ऋता
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया -
नवरात्रि की शुभकामनायें-
जब आयें हैं तो पार भी लग जायेंगे.....
जवाब देंहटाएंचिता क्यूँ???
बहुत सुन्दर...
सादर
अनु
आपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
जवाब देंहटाएंआया कहाँ से, जाना कहाँ है...
सुदूर क्षितिज की छाँव में
नभ का पंथी श्रांत क्लांत
अस्ताचल की गोद में
चुपचाप नींद भर सोता है
बुधवार 09/10/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
शुक्रिया यशोदा जी !!
हटाएंहम मात्र कठपुतली हैं
जवाब देंहटाएंहर धागे की पेंच पर
वही नचाता जाता है
हम नाचते जाते हैं|.......................यही नियति हैं |
बस उसका ही ध्यान कर
जवाब देंहटाएंमन को न मंझान कर
जो लाया है जगत में
पतवार वही तो खेता है ..
बस यही समझ आ जाए तो जीवन के सब दर्द, दुख ओर अहंकार मिट जाएंगे ...
बस उसका ही ध्यान कर
जवाब देंहटाएंमन को न मंझान कर
जो लाया है जगत में
पतवार वही तो खेता है
बहुत सुंदर .
आभार रविकर सर !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सरिता जी !!
जवाब देंहटाएंजीवन में सही राह चले तो वही जीवन है ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
मनोहारी पंक्तियाँ हैं . आभार .
जवाब देंहटाएंवो मानव भी क्या मानव है
'जय' भाग्य के लिए रोता जो
मानव वो साहस के हल से
कर्मक्षेत्र में ज्ञान बीज बोता जो
वाह एक गहन दर्शन को समेटे ये लाजवाब पोस्ट |
जवाब देंहटाएंअपना कर्म करो बाकी ईश्वर पर छोड़ दो ... बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचित्रों से खेलने का आपका यह शौक मुझे अच्छा लगता है क्योंकि मैं भी चित्रों में अभिवक्ति ढूँढने का प्रयास करता रहता हूँ।
जवाब देंहटाएंभोर हुई
नाविक चले जैसे उड़ें पंछी
दाने की आस।
bahut sundar rachna hai Hrita...
जवाब देंहटाएं