बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

190.अमीरी और गरीबी की रेखा किसने बनाई है




कौम और मजहब की गिनती किसने गिनाई है
निर्दोष जन में अलगाव की आग किसने लगाई है

रोटी कपड़ा मकान की जरूरत है सभी को
अमीरी और गरीबी की रेखा किसने बनाई है

हवा की सरसराहटों में है खौफ़ का धुँआ
ख्वाबों की बस्ती में छा रही तन्हाई है

तीरगी में नूर-ए-अज़्म इस कदर चमका
अदब से जीस्त ने तज़ल्ली से हाथ मिलाई है

मुसव्विर की कारीगरी से आबाद है दुनिया
ऐ बशर, तू क्यों कर रहा उससे बेवफाई है
................ऋता

12 टिप्‍पणियां:

  1. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-17/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -26 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  2. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा 17-10-2013 को
    चर्चा मंच
    पर है ।
    कृपया पधारें
    आभार

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  3. बहुत सुन्दर रचना | मेरे ब्लॉग के हाइकू में आपका इन्तेजार है |
    latest post महिषासुर बध (भाग २ )

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  4. हम गरीबों की दुनियाँ से आये हुए हैं, अमीरों के हम सताए हुए हैं , हमारी पसीने से है उनकी अमीरी हम तो उन्हीं के रुलाये हुए है , बहुत खूब

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  5. रोटी कपड़ा मकान की जरूरत है सभी को
    अमीरी और गरीबी की रेखा किसने बनाई है
    बहुत सही

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  6. वाह .. लाजवाब गज़ल है ... कमाल का मकता है ...
    पूरी गज़ल अर्थपूर्ण ...

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  7. ब्शुत प्रभावशाली रचना श्शक्त बधाई

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  8. mere blog par aap sabhi ka swagat hai..
    दिल मेरा फिर से तेरा प्यार माँगे ,
    प्यासे नयना फिर से तेरा दीदार माँगे ,
    प्रेम,स्नेह से प्रकाशित हो दुनिया मेरी ,
    ऐसा साथी पूरा जग संसार माँगे। http://iwillrocknow.blogspot.in/2013/10/blog-post_22.html

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