प्रथम दिवस को पूजते, जिनको हम सोल्लास|
पुत्री वह गिरिराज की, भरतीं जीवन आस||
चंद्र शिखर को सोहता, वाहन बनता बैल|पुत्री वह गिरिराज की, भरतीं जीवन आस||
पुत्री मिली यशस्विनी, धन्य हुए हिमशैल||
अधीश्वरी है शक्ति की, ब्रह्मचारिणी रूप|
सौम्यानन्दप्रदायिनी, लागें ब्रह्मस्वरूप||
हो विकास सद्बुद्धि का, अरु कुबुद्धि का नाश|
ब्रह्मचारिणी से मिले, हर पग दिव्य प्रकाश||
जिनकी ग्रीवा में बसे, चंदा का आह्लाद|
चंद्रघंटा करें कृपा, खुशियाँ हों आबाद||
त्रिविध ताप संसार का, कुष्माण्डा में युक्त|
देवी की आराधना, करती ताप विमुक्त||
बनी पाँचवें रूप में, स्कन्द पुत्र की मात|
दो अपना वात्सल्य माँ, आँचल में सौगात||
देवी पंचम रूप में, करो निवारण आप||
कात्यायिनि अवतार में, आईं ऋषि के द्वार|
माँ के आशिर्वाद से, मिला विजय का हार||
देवी सप्तम रूप में, करें काल का नाश|
पथ-बाधा को दूर कर, तम का करें विनाश||
मंत्रोच्चार गूँज उठा, जले सुगंधित धूप||
सिद्धिदात्रि का दिन नवम, पूर्ण करे नवरात|
जन जन का कल्याण हो, दे दो वर हे मात||
झूमे गरबा डाण्डिया, नाच रहा पंडाल|
हर पग में थिरकन बढ़ी, मचता खूब धमाल||
बुरा कभी न जीतता,यही जगत की रीत |
मन का रावण जब जले,बनता हृदय पुनीत||
नवरात्रि एवं विजयदशमी की अनंत शुभकामनाएँ !!..........ऋता शेखर
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [14.10.2013]
जवाब देंहटाएंचर्चामंच 1398 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें |
रामनवमी एवं विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर
सरिता भाटिया
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,विजयादशमी (दशहरा) की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं