थेथर
सामने नाट्य प्रदर्शन के लिए मंच सजा है| परदा खुलता है|
प्रथम दृश्यः
एक शिक्षक वर्ग में बैठे हैं| उनके सामने कुछ बच्चे बैठे हैं|
‘बच्चों, आज हमलोग कुछ प्रतियोगिताएँ करवाएँगे, आशा है आप सभी अच्छा प्रदर्शन करोगे|’
‘जी सर, हम सभी उस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं,’ दसवीं –ग्यारहवीं के बच्चे उत्साहपूर्वक बोले|
‘ठीक है बच्चों,हम आपको मिट्टी देंगे| आप सभी को एक एक मूर्ति बनानी है| जिसकी मूर्ति सबसे अच्छी होगी उसे इनाम दिया जाएगा|’
सभी बच्चे उत्साहपूर्वक अपने अपने स्थान पर खड़े हो गए| मूर्ति बनाने के लिए सबके पास सूखी मिट्टी से भरी बाल्टियाँ रख दी गईं|
शिक्षक का किरदार निभा रहे बच्चे ने कहा,’ अब आपलोग मूर्तियाँ बनाना शुरू करों|’
सभी बच्चे एक दूसरे को देखने लगे| अपने सामने मिट्टी का ढेर लगाकर उन्होंने पूछा,’ सर मूर्ति कैसे बनाएँ?’
‘क्यों, क्या दिक्कत है’ हल्की मुस्कान के साथ टीचर जी बोले|
‘हमे पानी नहीं दिया गया है, फिर कैसे बनेंगी मूर्तियाँ सूखी मिट्टी से,’ लगभग सभी एक स्वर में बोल पड़े|
तब तक तेज रौशनी वाला बल्ब मंच पर जला| कुछ देर में ही मंच का तापमान काफी बढ़ गया| बच्चे गर्मी से परेशान हो गए|
‘सर, बल्ब ऑफ़ करवाइये, पसीना हो रहा,’ बच्चों की तेज आवाज़ आई|
तभी एक बच्चा, दिनकर चिल्लाया,’ रुकिए सर, बस दो मिनट’
उसने एक रुमाल निकाला| चेहरा और हाथों को पोंछा| रुमाल तरबतर हो गया| फिर उसने पसीने की बूँदों को थोड़ी सी मिट्टी पर निचोड़ दिया| अब उस भीगी मिट्टी से उसने एक डंडी बनाई और उसपर नन्हीं नन्हीं बालियाँ लटका दीं|
मंच का बल्ब बन्द कर दिया गया था किन्तु वातावरण अभी भी गर्म था| मिट्टी की संरचना सूख गई| दिनकर ने पीले रंग से उसे रंग दिया|
पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा| तभी सूत्रधार के रूप में एक कलाकार का पदार्पण हुआ|
‘ मित्रों, हमारी धरती अब सिर्फ सूखी मिट्टी बन चुकी है| बिना बारिश के वह अनाज कैसे पैदा करे यह विचारणीय है| बारिश का पानी रोकने का कोई उपाय नहीं क्योंकि हम सभी धड़ाधड़ जंगल और पेड़ काटते चले जा रहे हैं| जैसे दिनकर ने अपने पसीने से गेहूँ की बालियाँ बनाईं वैसे ही हमारे श्रमिक भी कार्य करते हैं| किंतु सूरज के बढ़ते तापमान ने सब कुछ निगल लिया है| हमारा संदेश आप दर्शकों तक पहुँच पाए, इसी में इस मंचन की सार्थकता है|” दर्शकों ने तालियाँ बजाकर मंचन का स्वागत किया|
द्वितीय दृश्यः
मंच पर दर्शकों की भीड़ नजर आई| उनके बीच से एक आवाज आई,
’ कितने भी मंचन कर लो, इंसानों की प्रजाति थेथर हो चुकी है|’ साथ ही सम्मिलित हँसी की आवाज से नाट्य कलाकारों के चेहरों पर उदासी के भाव तिर गए|
-ऋता शेखर ‘मधु’
प्रथम दृश्यः
एक शिक्षक वर्ग में बैठे हैं| उनके सामने कुछ बच्चे बैठे हैं|
‘बच्चों, आज हमलोग कुछ प्रतियोगिताएँ करवाएँगे, आशा है आप सभी अच्छा प्रदर्शन करोगे|’
‘जी सर, हम सभी उस प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं,’ दसवीं –ग्यारहवीं के बच्चे उत्साहपूर्वक बोले|
‘ठीक है बच्चों,हम आपको मिट्टी देंगे| आप सभी को एक एक मूर्ति बनानी है| जिसकी मूर्ति सबसे अच्छी होगी उसे इनाम दिया जाएगा|’
सभी बच्चे उत्साहपूर्वक अपने अपने स्थान पर खड़े हो गए| मूर्ति बनाने के लिए सबके पास सूखी मिट्टी से भरी बाल्टियाँ रख दी गईं|
शिक्षक का किरदार निभा रहे बच्चे ने कहा,’ अब आपलोग मूर्तियाँ बनाना शुरू करों|’
सभी बच्चे एक दूसरे को देखने लगे| अपने सामने मिट्टी का ढेर लगाकर उन्होंने पूछा,’ सर मूर्ति कैसे बनाएँ?’
‘क्यों, क्या दिक्कत है’ हल्की मुस्कान के साथ टीचर जी बोले|
‘हमे पानी नहीं दिया गया है, फिर कैसे बनेंगी मूर्तियाँ सूखी मिट्टी से,’ लगभग सभी एक स्वर में बोल पड़े|
तब तक तेज रौशनी वाला बल्ब मंच पर जला| कुछ देर में ही मंच का तापमान काफी बढ़ गया| बच्चे गर्मी से परेशान हो गए|
‘सर, बल्ब ऑफ़ करवाइये, पसीना हो रहा,’ बच्चों की तेज आवाज़ आई|
तभी एक बच्चा, दिनकर चिल्लाया,’ रुकिए सर, बस दो मिनट’
उसने एक रुमाल निकाला| चेहरा और हाथों को पोंछा| रुमाल तरबतर हो गया| फिर उसने पसीने की बूँदों को थोड़ी सी मिट्टी पर निचोड़ दिया| अब उस भीगी मिट्टी से उसने एक डंडी बनाई और उसपर नन्हीं नन्हीं बालियाँ लटका दीं|
मंच का बल्ब बन्द कर दिया गया था किन्तु वातावरण अभी भी गर्म था| मिट्टी की संरचना सूख गई| दिनकर ने पीले रंग से उसे रंग दिया|
पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा| तभी सूत्रधार के रूप में एक कलाकार का पदार्पण हुआ|
‘ मित्रों, हमारी धरती अब सिर्फ सूखी मिट्टी बन चुकी है| बिना बारिश के वह अनाज कैसे पैदा करे यह विचारणीय है| बारिश का पानी रोकने का कोई उपाय नहीं क्योंकि हम सभी धड़ाधड़ जंगल और पेड़ काटते चले जा रहे हैं| जैसे दिनकर ने अपने पसीने से गेहूँ की बालियाँ बनाईं वैसे ही हमारे श्रमिक भी कार्य करते हैं| किंतु सूरज के बढ़ते तापमान ने सब कुछ निगल लिया है| हमारा संदेश आप दर्शकों तक पहुँच पाए, इसी में इस मंचन की सार्थकता है|” दर्शकों ने तालियाँ बजाकर मंचन का स्वागत किया|
द्वितीय दृश्यः
मंच पर दर्शकों की भीड़ नजर आई| उनके बीच से एक आवाज आई,
’ कितने भी मंचन कर लो, इंसानों की प्रजाति थेथर हो चुकी है|’ साथ ही सम्मिलित हँसी की आवाज से नाट्य कलाकारों के चेहरों पर उदासी के भाव तिर गए|
-ऋता शेखर ‘मधु’
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