शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

प्रॉपर्टी - लघुकथा

प्रॉपर्टी

"अभी आ रही हो, इतनी रात गए कहाँ थी तुम?"
"मैं तुम्हारी प्रॉपर्टी नहीं जो तुम मुझपर बन्धन लगाओ"
"प्रॉपर्टी कैसे नहीं, तुम्हारे पिता ने तुम्हे दान दिया है मुझे। तुम्हारे प्रति जिम्मेदारी है मेरी"
"अब भूल जाओ, कोर्ट ने धारा 497 हटाते हुए कहा है कि पत्नी पति की प्रॉपर्टी नहीं"
"हम्म"
"सुनो, कल तुम मेरे साथ चलना। पड़ोस में जो नया आदमी आया है, मुझे अजीब नजरों से घूरता है। तुम्हे मेरा साथ देखेगा तो डरेगा"
"रक्षा तो अपनी प्रॉपर्टी की की जाती है"
-ऋता

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-09-2018) को "पावन हो परिवेश" (चर्चा अंक-3109) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. प्रोपर्टी व हक़ जताने में अंतर तो है ही.
    बेहद उम्दा.
    रंगसाज़

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