हिन्दी दिवस पर विशेष
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और मातृभाषा है|
इसे भारतीय संविधान में १४ सितंबर १९४९ को शामिल किया गया था|
भारतीय संविधान के भाग १७ के अध्याय की धारा ३४३(१) में यह वर्णित है|
इसे देवनागरी लिपि में लिखा जाता है|
हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है|
भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है| दिल की बात दिल में ही दबी रहे यदि भाषा न हो| इस धरती पर जितने भी जीव-जन्तु पौधे है,सभी अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं| सभी जानवरों की अपनी बोलियाँ होती हैं, और जिस ढंग से वे बोलते हैं वो उनकी वेदना और खुशी को वर्णित कर जाते हैं| किन्तु उनके पास भाषा नहीं होती|
पेड़-पौधे भी वातावरण की अनुकूलता या प्रतिकूलता को चुपचाप दर्शाते हैं| धूप में मुरझा जाते हैं और पानी मिलने पर खिल जाते हैं| किन्तु उनके पास भाषा नहीं होती|
इस धरती पर एकमात्र प्राणि मनुष्य ही है जिसे ईश्वर ने भाषा का वरदान दिया है|
वे अपनी हर खुशी, वेदना, आक्रोश या विद्रोह को बोलकर, भाषा के जरिए व्यक्त करते हैं|धरती पर अगणित भाषाएँ बोली जाती हैं| हर भाषा की अपनी गरिमा होती है| हमारे हिन्दुस्तान की भाषा हिन्दी है किन्तु हम अपनी हिन्दी भाषा बोलते हुए सहज क्यों नहीं रह पाते| हिन्दी हमारी मातृभाषा है, हमारे राष्ट्र की भाषा है, फिर भी किसी बाहरी व्यक्ति से मिलते समय हम क्यों अंग्रेजी बोलकर उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं| यह अलग बात है कि आठ-दस पंक्तियाँ अंग्रेजी की बोलने के बाद बातचीत का सिलसिला हिन्दी में ही जमता है| इस सन्दर्भ में मुझे एक कहानी याद आती है जो मैंने बचपन में बाल-पत्रिका नंदन में पढ़ी थी|
अंतरमन में बसी मातृभाषा
अकबर के दरबार में बीरबल सबसे चतुर दरबारी माने जाते थे| एक बार एक विद्वान पंडित अकबर के दरबार में आए| वे बहुत सारी भाषाओ के ज्ञाता थे| उन्होंने चुनौती दी कि उनकी मातृभाषा कोइ नहीं ज्ञात कर सकता है क्योंकि वे सभी भाषाएँ धाराप्रवाह बोल सकते थे| सबने उनसे भिन्न-भिन्न भाषाओं में बहुत सारे सवाल किए जिसका उत्तर वे आसानी से देते चले गए| कोई उनकी मातृभाषा नहीं जान पाया| अब पंडितजी ने कहा कि यदि कल तक कोई दरबारी उनकी मातृभाषा नहीं बता पाया तो वे मान लेंगे कि वही सर्वोत्तम हैं|
अब अकबर ने बीरबल को पंडितजी की मातृभाषा पता लगाने का काम सौंप दिया| बीरबल ने इस चुनौती को स्वीकार किया और कल तक इस पहेली को सुलझा लेने का वादा किया| उसी दिन आधी रात को बीरबल पंडितजी के कक्ष में पहुँचे जहाँवे गहरी निद्रा में सो रहे थे| बीरबल एक तिनका लेकर आए थे जिसे उन्होंने पंडितजी के कान में घुसाकर गुदगुदी लगाई| पंडितजी थोड़ा कुनमुनाए और फिर करवट बदलकर सो गए| अब बीरबल ने तिनका दूसरे कान में डाला| पंडितजी उठकर बैठ गए और जोर से बोले,’ ‘येवुरुरा अदि’ अर्थात् ‘कौन है?’| बीरबल तबतक पलंग के नीचे छुप चुके थे| किसी को न पाकर पंडितजी फिर से सो गए| बीरबल वहाँ से चुपचाप निकल गए|
दूसरे दिन जब दरबार लगा तो बीरबल ने बताया कि पंडितजी की मातृभाषा तेलुगू है| सही उत्तर सुनकर पंडितजी आश्चर्यचकित हो गए| सबने यह जानना चाहा कि बीरबल मातृभाषा कैसे जान पाए| बीरबल ने कहा कि जब व्यक्ति नींद में होता है और उसे अपनी भावना व्यक्त करना होता है तो उसके मुँह से मातृभाषा ही निकलती है| फिर उन्होंने रात वाली घटना बताई| सारी बातें सुनकर सब हँस पड़े| पंडितजी ने बीरबल की चतुराई का लोहा मान लिया|
यहाँ पर मेरा यह कहना है कि दिल की गहराई से निकली अभिव्यक्ति सदा अपनी मातृभाषा में ही होती है, फिर हम इसे सहज रूप में क्यों नहीं अपनाना चाहते|
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इसी सन्दर्भ में एक दूसरी घटना का जिक्र करना चाहती हूँ|
अप्रैल और मई प्रतियोगिता परीक्षाओं का महीना होता है| उस समय दूसरे प्रांतों से आए प्रतियोगी विद्यार्थियों से बंगलोर भर जाता है| मेरे घर भी कुछ परिचित आकर रूकते हैं और अपने बच्चों को परीक्षाएँ दिलवाते हैं| एक परिचित की पुत्री अच्छे रैंक लाकर इंजिनीयरिंग की प्रतियोगिता परीक्षा में सफल हुई| जब काउँसलिंग का समय आया तो मेरे परिचित की इच्छा हुई कि मैं भी उनके साथ केन्द्र पर चलूँ| उनकी बात मानते हुए मैं भी केन्द्र पर गई| वहाँ पर विद्यार्थियों और अभिभावकों की भीड़ लगी हुई थी| माइक पर काउँसलिंग से सम्बन्धित सूचना दी जा रही थी| जिन बच्चों को मनपसंद कॉलेज मिल रहे थे, वे खुशी-खुशी बाहर आ रहे थे|
अब बारी थी हॉस्टल के तलाश की| कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी| लोग एक दूसरे से इस बारे में पूछना चाह रहे थे किन्तु संकोचवश पूछ नहीं पा रहे थे| यह संकोच भाषा को लेकर था| सब लोग यह सोच रहे थे कि या तो दक्षिण भारतीय भाषा जैसे कन्नड़, मलयालम वगैरह चलेगा या अंग्रेजी में बोलना होगा| अंग्रेजी में लोग बातें कर रहे थे किन्तु खुलकर बातें नहीं हो पा रही थीं| सब की नजरों में एक जिज्ञासा थी| बच्चे आपस में ज्यादा सहज थे| जो थोड़ी बहुत बातें हो रही थीं उससे पता चला कि सामने वाले अभिभावक भी उत्तर भारत से ही थे| मैंने देखा कि यह जानते ही दोनों अभिभावकों के चेहरे खिल उठे| दोनों ने एक ही तरह के उद्गार व्यक्त किए कि अंग्रेजी बोलते-बोलते वे परेशान हो गए थे, अब खुलकर बातें होंगी| मैं उनकी बातें सुनकर यही सोच रही थी कि आखिर हम हिन्दी बोलने में इतना क्यों सकुचाते हैं| हमारी मातृभाषा जो कि राष्ट्रभाषा भी है, कितनी सरल और कर्णप्रिय है और यह हमारी भारत माता की भाषा है| माता और संतान की भाषा एक ही होगी, तभी तो भावपूर्ण रिश्ते बनेंगे| गर्व से हिन्दी में बातें करें|
ऋता शेखर ‘मधु’
हिन्दी दिवस की शुभकामनाओं के साथ ...
जवाब देंहटाएंइसकी प्रगति पथ के लिये रचनाओं का जन्म होता रहे ...
आभार ।
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसदा जी एवं रश्मि प्रभा जी,
जवाब देंहटाएंहिन्दी हमारी भाषा, है हमारा जीवन-प्राण|
इतना सीचें हम इसे, होने न दें निष्प्राण||
हिन्दी दिवस की बहुत बहुत बधाई...शुभकामनाएँ
Rita ji,
जवाब देंहटाएंbas kahne bhar ko hai ki hamari matribhasha hindi hai. mahanagron mein hindi mein baat karen to koi puchhta nahin lekin koi angreji mein baat kare to sab log samman dete usey. high court ho ya supreme court sirf english mein hi kaam hota hai. kahin bhi naukri ke liye jaaye to angreji na aane par selection hin nahin hota. kisi ka phone call aaye to english mein baat ki jaati hai ye jaane bina ki phone uthaane wale ko angreji aati hai ki nahin. bade hotel mein waiter sadaiv english mein baat karta hai, bhale hum hindi mein bolein. hamare neta log bhi hindi nahin bolte jinko angreji aati hai. zindgi ke har chhote chhote kaam mein hindi ka yun apmaan hona asahya hota hai. bahut afsosjanak sthiti hai. hindi pakhwada mahaz sarkaari khanapurti hai. sach mein hindi ko samman kahin se nahin mil raha sirf hindi bloging ke. jabtak sabhi school mein hindi padhna aur bolna aniwaarya nahin hota hindi ko badhawa nahin mil sakta.
bahut achchha aalekh hai, shubhkaamnaayen.
बहुत अच्छा लगा...बधाई...।
जवाब देंहटाएंप्रियंका