आधार छंद रोला में गीतिका
नव पीढ़ी को आज, चमक का शौक लुभाता
गिरा शाख से पात, कहो फिर क्या जुड़ पाता
कड़वाहट के बोल, कभी मत बोलो प्यारे
जग लेता वह जीत, विनय से जो झुक जाता
जीवन है इक राह, कदम मत रुकने देना
मन के जीते जीत, हृदय भी यह समझाता
नदी गई है सूख, पनप जाते हैं पौधे
ढूँढे मिले न नीर, कलश रीता रह जाता
हम से ही है रीत, जमाना भी हमसे है
बनता वह अनमोल, जो दया धर्म निभाता
_ऋता शेखर ‘मधु’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-04-2016) को "हम किसी से कम नहीं" (चर्चा अंक-2325) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'