शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

नए गगन में अब लो पंछी, अपने पंख पसार||

सरसी छंद -- बढ़े देश का मान.....

नया साल लेकर आया है, पीत सुमन के हार|
नए गगन में अब लो पंछी, अपने पंख पसार||
हम बसंत के मस्त पवन में, गाएँ अपना गान|
झंडा ऊँचा रहे हमारा, बढ़े देश का मान||1||


हिम की नदिया जब पिघलेगी, फेनिल होगी धार|
सुर की देवी फिर छेड़ेंगी, निज वीणा के तार||
नीला नीला अम्बर होगा, होंगे प्रेम पराग |
मेघ नेह का जब उमड़ेगा, उमग उठेगा फाग ||2||


गले मिलेंगे भाई भाई, मिट जाएँगे द्वेष |
चैत्र माह में फिर पाएगा, अपना सूरज मेष ||
कोयलिया राग सुनाएगी, महक उठेंगे बौर |
फूलों की डोली लाएँगे, ऋतुओं के सिरमौर||3||


नारी मर्यादा लौटेगी, खुशियाँ होंगी पास|
जात पात का भेद न होगा, ऐसा है विश्वास ||
मानवता की चौखट पर, सुरभित होगा हर्ष |
दिल से दिल के तार बँधेंगे, आएगा नव वर्ष ||4||

*-ऋता शेखर ‘मधु’-*

2 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ख़ुशी की कविता या कुछ और?“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-12-2017) को "ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन" (चर्चा अंक-2834)

    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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