न्यु इयर
माँ के स्वर्गवास के बाद अवनि को मैके जाने का मन नहीं होता था| फोन पर भाई भाभी हमेशा उसे बुलाते किन्तु वह उदासीन भाव से मना कर देती| उसे लगता कि अब सभी भाई बहनों का अपना अपना परिवार है तो वह किसी को डिस्टर्ब करने क्यों जाए| उस दिन भी फोन पर भाई से बातें हो रही थीं| भाई ने बात बात में बताया कि कुहू को पढ़ने में मन नहीं लगता है| हर समय या तो फोन पर बातें करती रहती है या फिर फेसबुक में उलझी रहती है| वह कैसे दसवीं की बोर्ड परीक्षा निकाल पाएगी|’
‘’तो फोन क्यों दे रखा है उसे’’ अवनि ने एकाएक बोला था|
‘क्या करूँ, दोस्तों के फोन आते हैं| मना करने पर पढ़ना छोड़कर बैठी रहती है,’’ भाई की आवाज में विवशता झलक रही थी| उसके बाद उसने फोन रख दिया|
“कुहू, अवनि बुआ का फोन आया है, वह आ रही हैं अभी एक घंटे में| उन्होंने कहा है कि वह नया साल हमलोगों के साथ ही मनाएँगी,” मम्मी बोल रही थी|
“अच्छा”, पल भर को कुहू का चेहरा प्रफुल्लित हुआ फिर बुझ गया|
‘वह भी तो पढ़ने का ही उपदेश देंगी ”, मन ही मन सोचकर वह फिर से मोबाइल लेकर बैठ गई|
बुआ के आने पर वह प्रणाम करके कमरे मे चली गई| परदे की ओट से अवनि ने देखा कि वह मोबाइल गेम खेल रही थी|
डिनर के लिए सब साथ ही बैठे|
‘अरे, तुमलोगों ने टीवी क्यों बन्द करके रखा हुआ है| कोई हास्य धारावाहिक लगाओ कुहू,” अवनि सहमे से माहौल को हल्का करना चाहती थी|
“वही तो“ कुहू की आवाज़ थोड़ी तल्ख़ थी|
भाई भाभी ने कुछ नहीं कहा| हास्य धारावाहिक देखते हुए सब खाना खाने लगे| धीरे धीरे माहौल हल्का हुआ| कुहू का तनावपूर्ण चेहरा फूल के समान खिल गया|
“कुहू बेटा, तुम्हारी परीक्षा कब से है?”अवनि ने अब पूछना उचित समझा|
“फर्स्ट मार्च से” कुहू के नजरें नीचे करके कहा|
“अच्छा, मतलब अगले साल”, हँसते हुए अवनि ने कहा|
“क्या बुआ...अगला साल आने में कुछ घंटे ही तो बचे है”, खिलखिला पड़ी कुहू|
“ हाँ, उसके पहले ही पढ़ाई पढ़ाई की रट लगाना बुरी बात है| खूब मस्ती करो, फोन पर बातें करो, वीडियो गेम खेलो, टीवी देखो, है न कुहू”, अवनि कुहू की आँखों में झाँकती हुई बोली|
“हाँ बुआ, ये सब करने से मेरा मूड फ्रेश हो जाता है और मैं ज्यादा मन लगाकर पढ़ पाती हूँ”, कुहू ने दिल की बात कही| भाई भाभी सिर झुकाए सुन रहे थे| वे अब समझ पा रहे थे कि उन्होंने कुहू पर जरूरत से ज्यादा पाबंदी लगाई हुई थी|
बहुत दिनों के बाद आज की सुबह कुहू को बहुत प्यारी लग रही थी|
“हैप्पी न्यु इयर बुआ’’ उठते ही कुहू ने अवनी को विश किया|
“हैप्पी न्यु इयर मेरी प्यारी कुहू’, उतनी ही गर्मजोशी से अवनि ने कहा और कुहू को गले से लगा लिया|
पीछे भाई खड़ा था जिसके चेहरे पर भी प्रसन्नता झलक रही थी|
“कुहू, कुछ देर मेरे पास बैठो”, अवनि ने चाय पीते हुए कहा|
“नहीं बुआ, इसी साल मेरी परीक्षा है और मैं समय नहीं बरबाद करना चाहती| मैं पढ़ने जा रही किन्तु आप अभी नहीं जाना बुआ, मुझे आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं”, अवनि को एक चुम्मी देकर कुहू चली गई|
‘आपके आने से कुहू बहुत खुश है दीदी, वह आज खुद पढ़ने चली गई , यह तो चमत्कार जैसा लग रहा|’ भाभी की बात सुनकर अवनि मुस्कुरा दी|
“होता है ऐसा, बच्चे कभी कभी माता पिता का उपदेश सुनते सुनते ऊब जाते है और वही बात कोई और कहे तो समझ जाते हैं”, अवनि यह कहते हुए मन ही मन सोच रही थी कि मायके नहीं आने का उसका कदम कितना ग़ल़त था| माँ के बाद सबको देखने की जिम्मेदारी उसकी भी बनती थी|
-ऋता शेखर ‘मधु’
15/12/17
माँ के स्वर्गवास के बाद अवनि को मैके जाने का मन नहीं होता था| फोन पर भाई भाभी हमेशा उसे बुलाते किन्तु वह उदासीन भाव से मना कर देती| उसे लगता कि अब सभी भाई बहनों का अपना अपना परिवार है तो वह किसी को डिस्टर्ब करने क्यों जाए| उस दिन भी फोन पर भाई से बातें हो रही थीं| भाई ने बात बात में बताया कि कुहू को पढ़ने में मन नहीं लगता है| हर समय या तो फोन पर बातें करती रहती है या फिर फेसबुक में उलझी रहती है| वह कैसे दसवीं की बोर्ड परीक्षा निकाल पाएगी|’
‘’तो फोन क्यों दे रखा है उसे’’ अवनि ने एकाएक बोला था|
‘क्या करूँ, दोस्तों के फोन आते हैं| मना करने पर पढ़ना छोड़कर बैठी रहती है,’’ भाई की आवाज में विवशता झलक रही थी| उसके बाद उसने फोन रख दिया|
“कुहू, अवनि बुआ का फोन आया है, वह आ रही हैं अभी एक घंटे में| उन्होंने कहा है कि वह नया साल हमलोगों के साथ ही मनाएँगी,” मम्मी बोल रही थी|
“अच्छा”, पल भर को कुहू का चेहरा प्रफुल्लित हुआ फिर बुझ गया|
‘वह भी तो पढ़ने का ही उपदेश देंगी ”, मन ही मन सोचकर वह फिर से मोबाइल लेकर बैठ गई|
बुआ के आने पर वह प्रणाम करके कमरे मे चली गई| परदे की ओट से अवनि ने देखा कि वह मोबाइल गेम खेल रही थी|
डिनर के लिए सब साथ ही बैठे|
‘अरे, तुमलोगों ने टीवी क्यों बन्द करके रखा हुआ है| कोई हास्य धारावाहिक लगाओ कुहू,” अवनि सहमे से माहौल को हल्का करना चाहती थी|
“वही तो“ कुहू की आवाज़ थोड़ी तल्ख़ थी|
भाई भाभी ने कुछ नहीं कहा| हास्य धारावाहिक देखते हुए सब खाना खाने लगे| धीरे धीरे माहौल हल्का हुआ| कुहू का तनावपूर्ण चेहरा फूल के समान खिल गया|
“कुहू बेटा, तुम्हारी परीक्षा कब से है?”अवनि ने अब पूछना उचित समझा|
“फर्स्ट मार्च से” कुहू के नजरें नीचे करके कहा|
“अच्छा, मतलब अगले साल”, हँसते हुए अवनि ने कहा|
“क्या बुआ...अगला साल आने में कुछ घंटे ही तो बचे है”, खिलखिला पड़ी कुहू|
“ हाँ, उसके पहले ही पढ़ाई पढ़ाई की रट लगाना बुरी बात है| खूब मस्ती करो, फोन पर बातें करो, वीडियो गेम खेलो, टीवी देखो, है न कुहू”, अवनि कुहू की आँखों में झाँकती हुई बोली|
“हाँ बुआ, ये सब करने से मेरा मूड फ्रेश हो जाता है और मैं ज्यादा मन लगाकर पढ़ पाती हूँ”, कुहू ने दिल की बात कही| भाई भाभी सिर झुकाए सुन रहे थे| वे अब समझ पा रहे थे कि उन्होंने कुहू पर जरूरत से ज्यादा पाबंदी लगाई हुई थी|
बहुत दिनों के बाद आज की सुबह कुहू को बहुत प्यारी लग रही थी|
“हैप्पी न्यु इयर बुआ’’ उठते ही कुहू ने अवनी को विश किया|
“हैप्पी न्यु इयर मेरी प्यारी कुहू’, उतनी ही गर्मजोशी से अवनि ने कहा और कुहू को गले से लगा लिया|
पीछे भाई खड़ा था जिसके चेहरे पर भी प्रसन्नता झलक रही थी|
“कुहू, कुछ देर मेरे पास बैठो”, अवनि ने चाय पीते हुए कहा|
“नहीं बुआ, इसी साल मेरी परीक्षा है और मैं समय नहीं बरबाद करना चाहती| मैं पढ़ने जा रही किन्तु आप अभी नहीं जाना बुआ, मुझे आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं”, अवनि को एक चुम्मी देकर कुहू चली गई|
‘आपके आने से कुहू बहुत खुश है दीदी, वह आज खुद पढ़ने चली गई , यह तो चमत्कार जैसा लग रहा|’ भाभी की बात सुनकर अवनि मुस्कुरा दी|
“होता है ऐसा, बच्चे कभी कभी माता पिता का उपदेश सुनते सुनते ऊब जाते है और वही बात कोई और कहे तो समझ जाते हैं”, अवनि यह कहते हुए मन ही मन सोच रही थी कि मायके नहीं आने का उसका कदम कितना ग़ल़त था| माँ के बाद सबको देखने की जिम्मेदारी उसकी भी बनती थी|
-ऋता शेखर ‘मधु’
15/12/17
super
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-12-2017) को
जवाब देंहटाएं"लाचार हुआ सारा समाज" (चर्चा अंक-2820)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'