राह....
राह अनगिन हैं जग में
राह का ले लो संज्ञान
कहीं राह सीधी सरल
कहीं वक्र बन जाती
कहीं पर्वत कहीं खाई
कभी नदिया में समाती
सभी पार कर लोगे बंधु
त्याग चलो अभिमान
कहीं मिलेंगे सुमन राह में
कहीं कंटक वन पाओगे
कहीं है मुनियों का बसेरा
कहीं चंबल से घबराओगे
धैर्य जरा रख लेना बंधु
खिलेगी होठों पर मुस्कान
दोराहे होते हैं मुश्किल
रुक कर सोचो पल दो पल
स्वविवेक का काम वहाँ है
अवश्य मिलेगा कोई हल
नम्र नीति अपनाना बंधु
जरा लगाकर ध्यान
राह अनगिन हैं जग में
राह का ले लो संज्ञान
--ऋता शेखर 'मधु'
सुन्दर
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