राह....
राह अनगिन हैं जग में
राह का ले लो संज्ञान
कहीं राह सीधी सरल
कहीं वक्र बन जाती
कहीं पर्वत कहीं खाई
कभी नदिया में समाती
सभी पार कर लोगे बंधु
त्याग चलो अभिमान
कहीं मिलेंगे सुमन राह में
कहीं कंटक वन पाओगे
कहीं है मुनियों का बसेरा
कहीं चंबल से घबराओगे
धैर्य जरा रख लेना बंधु
खिलेगी होठों पर मुस्कान
दोराहे होते हैं मुश्किल
रुक कर सोचो पल दो पल
स्वविवेक का काम वहाँ है
अवश्य मिलेगा कोई हल
नम्र नीति अपनाना बंधु
जरा लगाकर ध्यान
राह अनगिन हैं जग में
राह का ले लो संज्ञान
--ऋता शेखर 'मधु'
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-12-2017) को "स्वच्छता ही मन्त्र है" (चर्चा अंक-2829) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
क्रिसमस हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'