पुरस्कार
लगभग चार वर्ष पहले अनीता की नियुक्ति मध्य विद्यालय में हुई थी| जिस दिन वह विद्यालय में योगदान देने गईं , सभी शिक्षक और बच्चे बहुत खुश हुए थे क्योंकि वहाँ गणित के लिए कोई शिक्षक न था|
योगदान देने के बाद प्रधानाध्यापिका ने उन्हें बैठने को कहा और बोलीं, “अनीता जी, आप कल से क्लास लीजिएगा| हम आपको आठवीं कक्षा की क्लास टीचर बनाएँगे|"
उसके बाद उन्होंने एक बच्चे को पुकारा,”रोहित बेटा, ये नई मैडम आई हैं| जरा बाहर चाय वाले को कह दो कि चाय दे जाए|’
“जी मैम, “कहकर वह बाहर गेट पर के चायवाले को कह आया|
“पर आपने बच्चे को क्यों भेजा,”बात अनीता के गले से न उतरी|
“मध्य और प्राथमिक विद्यालयों के लिए सरकार ने चपरासी और क्लर्क का पद नहीं रखा है| इसलिए कुछ काम बच्चों से भी करवा लेते हैं|’जवाब सुनकर अनीता ने उनकी लाचारी को समझा|
कुछ देर बाद किसी कागज की फोटो कॉपी करवाने और मध्यान्ह भोजन के लिए दाल मँगवाने के लिए उन्होंने रोहित को भेजा|
“मैम, आप बार बार रोहित को ही क्यों भेजती हैं काम के लिए| किसी अन्य को भी भेजिए,”अनीता ने जिज्ञासा प्रकट की|
“क्योंकि वह स्कूल का सबसे जिम्मेदार बच्चा है,” कह कर वह आफिस में चली गईं|
दूसरे दिन अनीता समय से कुछ पूर्व विद्यालय पहुँचीं| उन्होंने देखा कि रोहित भी आ चुका था| उसने विद्यालय के सभी कमरों के ताले खोले| कुछ कुर्सियाँ निकाल कर बाहर बरामदे में रखी| प्रार्थना सत्र समाप्त हुआ तो सभी बच्चे अपनी अपनी कक्षा में चले गए|
अनीता रजिस्टर लेकर आठवीं क्लास में गई| सबसे पहले बच्चों के स्तर को जाँचने के लिए उसने गणित का एक सवाल दिया| रोहित ने झटपट बना कर दिखा दिया| अनीता ने बोर्ड पर फिर दूसरा सवाल दिया| सभी बच्चे हल करने लगे| तभी बाहर से रोहित की पुकार हुई|
“सुनकर आता हूँ मैम, “कहकर वह चला गया| अनीता ने उसकी कॉपी देखी| वह आधा सवाल हल कर चुका था| रोहित वापस आकर उत्तर पूरा करने लगा| पाँच मिनट बीत गये| दूसरे बच्चों ने तबतक दिखा दिया| रोहित के माथे पर पसीने की बूँदें थीं|
‘ क्या हुआ रोहित, नहीं बन रहा क्या”,अनीता ने पूछा|
“मैम, बार बार भाग देने में गल्ती हो जा रही|”
अनीता समझ गई कि ध्यान भंग होने की वजह से ऐसा हो रहा| वह रोहित से कुछ कहने ही वाली थी कि बाहर से फिर बुलावा आ गया| इस बार रोहित ज्यों ही उठा, अनीता ने उसे बैठकर सवाल हल करने को कहा और स्वयं बाहर चली गई|
“आप क्यों आ आईं क्लास छोड़कर,” हेड मैम को अनीता का आना अच्छा नहीं लगा था|
“रोहित भी तो क्लास छोड़कर ही आता मैम| बताइए, क्या करना है| मैं कर देती हूँ| मैं अपने क्लास से पढ़ाई के दौरान किसी को निकलने नहीं दूँगी|” दृढ़ता से अनीता ने कहा|
“वैसा कुछ काम नहीं है, आप जाइए,” अनीता वापस आ गई| रोहित ने वह सवाल हल कर लिया था| उसकी कॉपी देखते हुए अनीता ने पूछा,”देखो रोहित, काम करना अच्छी बात है किन्तु इससे एकाग्रता भंग होती है, तुमने देखा न अभी|पढ़ने वाले बच्चों को हमेशा पढ़ाई पर ही एकाग्र रहना चाहिए|”
“किन्तु मैम, मुझे बुलाया जाए तो क्या करूँ, क्या कहूँ|”
“देखो बेटा, तुम वे सारे काम लंच ब्रेक में भी कर सकते हो न| सुबह भी मैं बच्चों की पारी बनाकर विद्यालय खोलने की जिम्मेवारी बाँट दूँगी| सुबह का समय भी पढ़ाई में लगाया करो| पढ़ाई ही तुम्हारा भविष्य है| दसवीं में अच्छे नम्बर नहीं आए तो अच्छी जगह दाखिला नहीं मिलेगा|”
उस दिन के बाद से रोहित को बीच कक्षा से नहीं बुलाया गया| आठवीं पूरी करके वह किसी दूसरे शहर चला गया था जहाँ उसके पिता का तबादला हो गया था|
दसवीं की बोर्ड परीक्षा का परिणाम आ चुका था| विद्यालय में जिला शिक्षा पदाधिकारी का निमंत्रण पत्र आया हुआ था| बोर्ड परीक्षा में जिलास्तर और राज्यस्तर पर अच्छा रैंक लाने वाले बच्चों को आज सरकार की ओर से सम्मानित किया जाना था| वहाँ जाने की जिम्मेदारी अनीता को सौंपी गई| मंच पर कार्यक्रम शुरु हो चुका था| बच्चे आते और अपना सम्मान शिक्षा मंत्री से लेकर वापस चले जाते| अनीता का ध्यान आज रोहित की ओर जा रहा था| पता नहीं रोहित को कितने प्रतिशत नम्बर आए होंगे, बार बार यह बात जेहन में आ रही थी|
“और जिला स्तर पर प्रथम स्थान पाने वाले बच्चे का नाम है, रोहित कुमार”, मंच पर आनेवाला बालक सम्मान ग्रहण कर चुका था|
उससे पूछा गया,”तुम अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहोगे|” “अनीता मैम को,”सुनकर अनीता की तंद्रा अचानक भंग हुई|
“यदि अनीता मैम यहाँ हैं तो मंच पर आने की कृपा करें| मैं उनका आशीर्वाद लेना चाहता हूँ|” हॉल के पिछले सीट पर बैठी अनीता रोहित को पहचान नहीं पाई थी|
अब उसके कदम मंच की ओर बढ़ रहे थे, आख की कोरों पर आई बूँदें ढलक जाना चाहती थीं|
“मैम, आपने मुझे समझाया न होता तो आज मैं यहाँ नहीं होता,” कहते हुए रोहित अनीता के पैरों पर झुक गया| तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूँज रहा था| अनीता को लग रहा था जैसे रोहित ने उसे बेस्ट टीचर का पुरस्कार दिया है|
@ऋता शेखर ‘मधु’
कुछ हैं इसीलिये बहुत कुछ बचा है। ये वास्तविकता हो जाये 60% के लिये ही सही तो सोचिये क्या से क्या हो जाये? बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंवाह ! बेहतरीन दिल को छूने वाली अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-06-2018) को "करना ऐसा प्यार" (चर्चा अंक-3010) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया कहानी ,प्रेरणादायक,हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझकर अपना दायित्व निभाना चाहिए ,तभी रोहित जैसे बच्चे आगे लाये जा सकेंगे,(एक जगह नाम राहुल हो गया है शायद गलती से)
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