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उल्फतों का वो समंदर होता
पास में उसके कोई घर होता
दर्द उसके हों और आँसू मेरे
प्रेम का ऐसा ही मंजर होता
दिल के जज़्बात कलम से बिखरे
काग़ज़ों पर वही अक्षर होता
मुस्कुराता रहा जो बारिश में
दीन में मस्त कलन्दर होता
उल्फतों का वो समंदर होता
पास में उसके कोई घर होता
दर्द उसके हों और आँसू मेरे
प्रेम का ऐसा ही मंजर होता
दिल के जज़्बात कलम से बिखरे
काग़ज़ों पर वही अक्षर होता
मुस्कुराता रहा जो बारिश में
दीन में मस्त कलन्दर होता
सर्द मौसम या तपन सूरज की
झेलता मैं तो सिकन्दर होता
-ऋता
झेलता मैं तो सिकन्दर होता
-ऋता
सुन्दर गजल।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-07-2018) को "अतिथि देवो भवः" (चर्चा अंक-3018) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
सर्द मौसम या तपन सूरज की
जवाब देंहटाएंझेलता मैं तो सिकन्दर होता
वाह
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 02 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदर्द उसके हो और आंसू मेरे
जवाब देंहटाएंप्रेम का ऐसा ही मंजर होता है
बहुत सुंदर रचना
वाह बहुत सुन्दर ऋता जी।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर ऋता जी।
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंसर्द मौसम या तपन सूरज की
जवाब देंहटाएंझेलता मैं तो सिकन्दर होता
वाह !!!!!!!! अत्यंत श्रीद्यस्प्र्शी रचना ऋतू जी !!!!!!!
बहुत अच्छी गजल!
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
निमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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