
रडार ट्वेनटी फोर की साइट पर आसमान में वायुयानों का गमन देखने वाले अधिकारियों के बीच खलबली मच गई| तिरंगे साफे में ये कौन प्रकट हो रहा है| मजबूत नसों वाली दुबली काया किसकी है?
किसी आशंका ने सबको डरा दिया| रक्षा मंत्रालय को फोन किया गया| मंत्रालय में फोन रिसीव करने वाले ने फोन रखा ही था कि दूसरी बार घंटी बजी| यह फोन मेट्रो के अधिकारी का था|
‘सर, हम अपने मेट्रो पर चौबीस घंटे नजर रखते हैं| हमारे स्क्रीन पर तिरंगे साफे में ये कौन प्रकट हो रहा है| मजबूत नसों वाली दुबली काया किसकी है?कहीं हमारा मेट्रो निशाने पर तो नहीं’
अगला फोन एक बड़े बिल्डर का था| उसने भी वैसा ही कुछ देखा था अपनी गगनचुम्बी इमारत के पास|
रेलवे से भी इसी आशय का फोन आया| अभी रक्षामंत्री को बताने की योजना बन ही रही थी कि मंत्रालय में अब जो फोन आया उससे हड़कम्प मच गया| एटॉमिक सेन्टर ,जहाँ से कुछ देर में ही एक उपग्रह छोड़ा जाने वाला था, वहाँ भी वह प्रकट हो गया था| अफरा तफरी मच गई| सबको रक्षा मंत्रालय से नेटवर्किंग के जरिए जोड़ा गया|
रक्षामंत्री ने सवाल किया,”तुम कौन हो| यदि तुम सुन और बोल सकते हो तो जवाब दो| यदि हमारे देश को नुकसान पहुँचाने आए हो तो तुम्हारा इरादा कभी पूरा नहीं होगा|हम सभी देशभक्त हैं|”
अचानक उसने अपना साफा हवा में लहरा दिया,” मेरे इस साफे को देखो| इसकी हरियाली धूमिल हो रही है तुम लोगों की वजह से| अब ध्यान से देखो मुझे, जब मैं ही न रहूँगा तो तुम और तुम्हारे ये सारे आधुनिक उपकरण भी न रहेंगे|’
‘अरे , तुम तो किसान लगते है| पर तुम्हारी हमसे क्या शिकायत है|”
“शिकायत, हा हा हा, फसल कंक्रीटों पर नहीं उगते साहब| उसके लिये मिट्टी वाले खेत चाहिए जिसे तुमलोग हमसे छीनते जा रहे हो| देश को कौन नुकसान पहुँचा रहा, सभी देशभक्त सोचिएगा,’ यह कहते हुए वह धीरे धीरे विलुप्त हो गया|
अब सबकी नजरें अपने अपने स्क्रीन पर थीं जहाँ दूर दूर तक हरियाली का नामोनिशान नहीं था|
किसी आशंका ने सबको डरा दिया| रक्षा मंत्रालय को फोन किया गया| मंत्रालय में फोन रिसीव करने वाले ने फोन रखा ही था कि दूसरी बार घंटी बजी| यह फोन मेट्रो के अधिकारी का था|
‘सर, हम अपने मेट्रो पर चौबीस घंटे नजर रखते हैं| हमारे स्क्रीन पर तिरंगे साफे में ये कौन प्रकट हो रहा है| मजबूत नसों वाली दुबली काया किसकी है?कहीं हमारा मेट्रो निशाने पर तो नहीं’
अगला फोन एक बड़े बिल्डर का था| उसने भी वैसा ही कुछ देखा था अपनी गगनचुम्बी इमारत के पास|
रेलवे से भी इसी आशय का फोन आया| अभी रक्षामंत्री को बताने की योजना बन ही रही थी कि मंत्रालय में अब जो फोन आया उससे हड़कम्प मच गया| एटॉमिक सेन्टर ,जहाँ से कुछ देर में ही एक उपग्रह छोड़ा जाने वाला था, वहाँ भी वह प्रकट हो गया था| अफरा तफरी मच गई| सबको रक्षा मंत्रालय से नेटवर्किंग के जरिए जोड़ा गया|
रक्षामंत्री ने सवाल किया,”तुम कौन हो| यदि तुम सुन और बोल सकते हो तो जवाब दो| यदि हमारे देश को नुकसान पहुँचाने आए हो तो तुम्हारा इरादा कभी पूरा नहीं होगा|हम सभी देशभक्त हैं|”
अचानक उसने अपना साफा हवा में लहरा दिया,” मेरे इस साफे को देखो| इसकी हरियाली धूमिल हो रही है तुम लोगों की वजह से| अब ध्यान से देखो मुझे, जब मैं ही न रहूँगा तो तुम और तुम्हारे ये सारे आधुनिक उपकरण भी न रहेंगे|’
‘अरे , तुम तो किसान लगते है| पर तुम्हारी हमसे क्या शिकायत है|”
“शिकायत, हा हा हा, फसल कंक्रीटों पर नहीं उगते साहब| उसके लिये मिट्टी वाले खेत चाहिए जिसे तुमलोग हमसे छीनते जा रहे हो| देश को कौन नुकसान पहुँचा रहा, सभी देशभक्त सोचिएगा,’ यह कहते हुए वह धीरे धीरे विलुप्त हो गया|
अब सबकी नजरें अपने अपने स्क्रीन पर थीं जहाँ दूर दूर तक हरियाली का नामोनिशान नहीं था|
-ऋता शेखर ‘मधु’
सुन्दर। सोचेगा कौन?
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.06.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3008 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व शरणार्थी दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंकिसान की आत्मवेदना को इतना सुंदर कोई बॉटनी वाला ही लिख सकता है ऋता जी
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