मनोरम छंद
मापनी-2122.2122
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गीतिका
पदांत - देना
समांत- आर
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जिन्दगी को सार देना
नेह को विस्तार देना
फूल की चाहत सभी को
शूल को भी प्यार देना
राह में फिसलन बहुत है
चाल को आधार देना
स्वप्न होते अनगढ़े से
कर्म से आकार देना
बोल मीठे भाव निश्छल
जाँचकर उद्गार देना
पेड़ पौधे हैं धरोहर
प्रेम से उपहार देना
जो करे कर्तव्य अपना
बिनकहे अधिकार देना
स्वरचित, अप्रकाशित
--ऋता शेखर 'मधु'
इस छंद के लिए मुझे फेसबुक समूह 'मुक्तक लोक' से सम्मान पत्र मिला है|
मापनी-2122.2122
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गीतिका
पदांत - देना
समांत- आर
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जिन्दगी को सार देना
नेह को विस्तार देना
फूल की चाहत सभी को
शूल को भी प्यार देना
राह में फिसलन बहुत है
चाल को आधार देना
स्वप्न होते अनगढ़े से
कर्म से आकार देना
बोल मीठे भाव निश्छल
जाँचकर उद्गार देना
पेड़ पौधे हैं धरोहर
प्रेम से उपहार देना
जो करे कर्तव्य अपना
बिनकहे अधिकार देना
स्वरचित, अप्रकाशित
--ऋता शेखर 'मधु'
इस छंद के लिए मुझे फेसबुक समूह 'मुक्तक लोक' से सम्मान पत्र मिला है|
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-07-2019) को " हम तुम्हें हाल-ए-दिल सुनाएँगे" (चर्चा अंक- 3383) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह बहुत सुन्दर। बधाई।
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