शंकर जी की नगरी आकर, बम लहरी से दिल डोला है |
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है ||
निकल जटा से शिव की गंगा,
करने आतीं सबको पावन |
हर हर गंगे के नारों से ,
गूँज उठा है फिर से सावन ||
जटाजूटधारी के तन पर, व्याघ्र चर्म का इक चोला है|
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है||
इस दुनिया की रीत यही है
सबको ही विष पीना होगा ||
फैल न पाए वह जीवन में
नीलकंठ बन जीना होगा ||
डम डम बज कर डमरू भी अब, ओम नमः नमः शिव बोला है |
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है ||
ढेर लगी है विल्वपत्र की ,
राम नाम का शुभ वंदन है ||
भाँग धतूरा भोग बने हैं ,
चढ़ता शिव माथे चंदन है ||
वृषभ सर्प जहँ संग रहें वह, औघड़दानी का टोला है |
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है||
छाए हैं संकट के बादल
शिव जी अपनी कृपा बढ़ाओ|
मति मानव की मूढ़ बनी है,
वहाँ ज्ञान की परत चढ़ाओ ||
भस्म विभूषित होकर बैठे, एक नयन रखता शोला है|
शिव करते उपकार सभी पर, मन उनका बिल्कुल भोला है||
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शिव स्तुति। बहुत आनंद आया। भगवान जी हम सब पर उपकार करें और यह महामारी का संकट दूर कर दें और हम सबको लम्बी और स्वस्थ आयु दें।
जवाब देंहटाएंएक अनुरोध, क्या आप मेरे ब्लॉग पर आ कर मेरी स्वरचित रचनाएँ पढ़ेंगी।
मैं अपनी कविताएं अपने ब्लॉग काव्यतरंगिनी पर डालती हूँ।
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ॐ नम: शिवाय !
जवाब देंहटाएंभक्ति भाव से भरा सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लिखा है आप मेरी रचना भी पढना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना और सराहनीय प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंकविता की हर पंक्ति दिल को छू जाती है।
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