ये तुम कौन
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इस संध्या की बेला में,
जब निपट अकेला बैठा मैं
पर भगदड़ के बीचों इस मौन
में अठ्ठहासी ये तुम कौन?
पल ये कितने चले गए
अनंत अर्णव में बिखर गए
बीत गया जो पहर ये पौन
फिर भी जाने मन क्यों गौण...
ध्यान से परे कैसा ये खेल
विषाद भी है और है अठखेल
चहुँ ओर तो सिर्फ हैं रौन
फिर मन में सन्यासी कौन?
कट कट कर बहता है चित्त
मृत नहीं - अत्यंत विचित्र
लथपथ पड़ा बिचारा जौन
उसी के कारण मन ये मौन...
शिशिर शेखर......मेरे सुपुत्र
मेरी नकल कर रहा हैः)
वाह उम्दा प्रस्तुति ये पंक्तियाँ तो लाजवाब हैं
जवाब देंहटाएंध्यान से परे कैसा ये खेल
विषाद भी है और है अठखेल
चहुँ ओर तो सिर्फ हैं रौन
फिर मन में सन्यासी कौन
शुक्रिया अरुण जी !!
हटाएंनक़ल इतनी उत्कृष्ट,इतनी गहरी .... उस छाया के प्रति उठता प्रश्न उसे देखने का प्रमाण है, उसे समझ पाने की बुनियाद है . यथार्थ में मन समाहित हो तो कई उत्तर मिल जाते हैं रास्तों में
जवाब देंहटाएंदी, फ़ेसबुक पर आपका आशीर्वाद पाकर वह बहुत खुश है|
हटाएंक्या बात कर रही हैं ऋता जी...
जवाब देंहटाएंये बेटे ने लिखी है???
बहुत बहुत सुन्दर....आपके गुण झलक रहे हैं स्पष्ट!!!
(नक़ल कभी कभी असल से प्यारी होती है....:-))
शुभकामनाएं शिशिर को..
सस्नेह
अनु
आप जैसी प्यारी मासी के गुण भी झलक रहे हैः)
हटाएंशुक्रिया अनु!!
ध्यान से परे कैसा ये खेल
जवाब देंहटाएंविषाद भी है और है अठखेल
चहुँ ओर तो सिर्फ हैं रौन
फिर मन में सन्यासी कौन?,,,,सुंदर पंक्तियाँ,,,,,
शिशिर शेखर जी, को हिदी में उम्दा लेखन के लिये बहुत२ शुभकामनाये,,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
शुक्रिया सर !!आपका आशीर्वाद बना रहे...
हटाएंअरे वाह:..बेटे ने लिखी है..? माँ के संस्कार कहाँ जाएगे..?बहुत बढ़िया लिखा है.शिशिर शेखर को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया दी!!
हटाएंइतनी गहन कविता लिखने के लिये शिशिर को बधाई
जवाब देंहटाएंवन्दना जी, बहुत आभार!!
हटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है शिशिर ने ... बधाई सहित शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिये आभार आपका
शुक्रिया सदा जी!!
हटाएं:).... sahi sannidhya asar dikhata hai....
जवाब देंहटाएंtabhi to abhineta ka beta abhineta banta hai
hai na
हम्म्म्म...ये तो हैः)
हटाएंशुक्रिया !!
ध्यान से परे कैसा ये खेल
जवाब देंहटाएंविषाद भी है और है अठखेल
चहुँ ओर तो सिर्फ हैं रौन
फिर मन में सन्यासी कौन?
kya baat hai sunder
bete ji nakal kar rahe hai yahi bahut hai achchhi chij ka nakal karna achchha hai
बेटा धन्य हुआ मासी का आशीर्वाद पाकर!!
हटाएंरचना जी...इस ब्लॉग की प्रथम पोस्ट से आप हमारे साथ हैं
आज भी आपका इन्तजार रहता है
behatrin panktiyan शिशिर को बधाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी!!
हटाएंआपका आशीर्वाद पाकर कृतार्थ हुए...आभार!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना बेटा शिशिर
जवाब देंहटाएंबहुत सारी शुभकामनाएं
बहुत आभार!!
हटाएंबहुत सुंदर गीत. शिशिर को बहुत बहुत बधाई हिंदी में योगदान करने के लिये.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रचना जी...उत्साहवर्धन के लोए हार्दिक आभार!!
हटाएंकल 14/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
शुक्रिया यशवंत जी...आभार!!
हटाएंसुंदर भावपूर्ण कविता । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना.बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंध्यान से परे कैसा ये खेल
विषाद भी है और है अठखेल
चहुँ ओर तो सिर्फ हैं रौन
फिर मन में सन्यासी कौन?
बहुत सुंदर .... शिशिर को बधाई ....
मन क्यूँ है गौण .........
जवाब देंहटाएंमन में छिपा सन्यासी कौन ....बेहद खूबसूरत अंतर्मन अभिव्यक्ति
ध्यान से परे कैसा ये खेल
जवाब देंहटाएंविषाद भी है और है अठखेल
चहुँ ओर तो सिर्फ हैं रौन
फिर मन में सन्यासी कौन?
बहुत ही सुन्दर रचना ....
बेहद अर्थपूर्ण !!!
बहुत ही बेहतरीन कविता लिखी है शिशिर ने..
जवाब देंहटाएंशिशिर को बहुत-बहुत बधाई..
और ढेरों शुभकामनाएँ....
:-)
ध्यान से परे कैसा ये खेल
जवाब देंहटाएंविषाद भी है और है अठखेल
चहुँ ओर तो सिर्फ हैं रौन
फिर मन में सन्यासी कौन?
इतनी गहन सोच... कमाल है. शिशिर को ढेरों बधाईयाँ और आशीष!