बुधवार, 13 दिसंबर 2017

करामात होती नहीं ज़िन्दगी में



निग़ाहों की बातें छुपाने से पहले
नज़र को झुकाए थे आने से पहले

नदी के किनारे जो नौका लगी थी
बहुत डगमगाई बिठाने से पहले

जो आज़ाद रहने के आदी हुए थे
बहुत फड़फड़ाए निभाने से पहले

करामात होती नहीं ज़िन्दगी में
पकड़ना समय बीत जाने से पहले

बहन की दुआ आँक पाते न भाई
कलाई पे राखी सजाने से पहले

दफ़ा हो न जाए सुकूँ ज़िन्दगी का
ऋता सोचना आजमाने से पहले

ऋता शेखर 'मधु'

122*4

8 टिप्‍पणियां:

  1. पकड़ना समय बीत जाने से पहले ...लाजवाब प्रस्तुति

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  2. वाह क्या बात है
    सुंदर शब्दों से सजी नायब रचना
    मन को छू गई

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  3. बहन की दुआ आँक पाते न भाई, कलाई पे राखी सजाने से पहले....!
    अन्यथा ना लें, पर पूरा इत्तेफाक नहीं हो पा रहा !!

    जवाब देंहटाएं

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