श्रीरामकथा की पहली कविता श्रीराम जन्म पर उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुईं|
श्रीरामकथा की दूसरी कविता लेकर प्रस्तुत हूँ|
श्रीरामकथा की दूसरी कविता लेकर प्रस्तुत हूँ|
आपकी छोटी सी प्रतिक्रिया भी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है|
श्रीराम जन्मोत्सव
विप्र गौ देव सन्त, और वचन के कारण|
श्री विष्णु आए, करके मानव शरीर धारण||
कौशल्या माता को दिए थे दर्शन, लेने से पहले अवतार|
श्याम शरीर नेत्र थे सुन्दर,आयुध सहित भुजाएँ थीं चार||
साकार रूप कौशल्या देखें, जैसे चकित चकोर|
पुत्र-रूप में प्रभु को पाया, हो गईं भाव-विभोर||
प्रभु पुनः शिशु बने, गूँजा कर्णप्रिय रूदन|
रानियाँ दौड़ पड़ीं,अयोध्या हुआ आनन्द मे मग्न||
हर्षित दशरथ उठ नहीं पाते, आए ब्रह्मानंद|
पुत्र रूप में प्रभु को पाए,हुआ परम आनन्द||
दिया आदेश दासों को, खूब बजाओ बाजा|
हमारे कुलदीपक आए,लहरा दो ढेरों ध्वजा||
गुरू वशिष्ठ ने करवाया, श्राद्ध नान्दीमुख जात कर्म|
ढेरों दक्षिणा विप्रों को दे, दशरथ ने निभाया धर्म||
आकाश झूम-झूम करने लगा, पुष्पों की वृष्टि|
श्रीराम के स्वागत को, नाच उठी सारी सृष्टि||
तोरण वन्दनवार से, सज गया अयोध्या नगर|
सजी नारियाँ जाने लगीं, राजमहल के डगर||
स्वर्ण कलश भर, मंगल थाल सजा, गा उठीं शुभमंगलम्|
मागध सूत बन्दी गवैये, गाने लगे गीत सुस्वागतम्||
सिंच गया नगर, कस्तूरी चन्दन और कुंकुम से|
मह-मह महक उठी हवा, मिट्टी महकी खुशबू से||
कैकेयी सुमित्रा भी माता बनीं, पाई सुन्दर पुत्र-रत्न|
वर्णन हो न सकी शोभा,शब्दों ने किया बहुत ही यत्न||
अगर की धूप है अन्धकार, अबीर गुलाल है लालिमा|
मन्दिर की मणियाँ तारागण, महल कलश है चन्द्रमा||
कोमलवाणी की वेदध्वनि,लगे पक्षियों की चहचह रसीली|
भास्कर सोचने लगे, पकृति क्यों लगने लगी नई नवेली||
देख नगर का सौन्दर्य, रुक गया सूर्य का रथ|
अपलक दृष्टि जमी रही, भूले आगे का पथ||
एक मास बीत गए, दिन गया ठहर
मर्म जान सका न कोई
क्यों न आया रात्रि पहर||
देख जन्मोत्सव की शोभा, सूर्य राम गुण गाने लगे|
आशीष मिला सारे ही शिशुओं को
वे बनें, दीर्घायु और महान||
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ऋता शेखर ‘मधु’
वाह राम जन्म का बहुत ही सुन्दर आनन्दमयी चित्रण किया है……………शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकैकेयी सुमित्रा भी माता बनीं, पाई सुन्दर पुत्र-रत्न|
जवाब देंहटाएंवर्णन हो न सकी शोभा,शब्दों ने किया बहुत ही यत्न||
देख नगर का सौन्दर्य, रुक गया सूर्य का रथ|
अपलक दृष्टि जमी रही, भूले आगे का पथ||
ये दोनों दोहे उस वक्त की सुन्दरता को आखों के सामने सजीवता के साथ चित्रित कर रहे हैं| मैं तो आत्मविभोर हो गया| भगवान राम की कृपा आप पर बनी रहे|
सारे ही शिशु दीर्घायु और महान बनें,
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति |
हमारी बधाई स्वीकारें ||
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंभक्ति रस में सरावोर कर दिया इस रचना ने!
बहुत बढ़िया लगा! शानदार प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंBhavpurn bhakti rachna jo dil ko chhoo gayi.
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंउपयुक्त तस्वीरों के साथ अनूठा प्रयास, बधाई.
जवाब देंहटाएंविराट् का अवतार है। क्या गगन,क्या धरा-सबने बांहें फैला दीं।
जवाब देंहटाएंऋता जी आपने इस सुन्दर सरस भक्तिमय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंको अनुपम भावों से मधुमय बना दिया है.
बहुत बहुत आभार.