शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

दरख्तों ने जीर्ण पत्ते झाड़े हैं



रुख़सत होने वाले अब जाड़े हैं
दरख्तों ने जीर्ण पत्ते झाड़े हैं
आने वाला बहारों का मौसम है
शाखों पर नव कोंपलें मुस्कुराएँगे
घूँघट में छुप चुकी रंगीन कलियाँ हैं
भँवरे भी अब गुनगुनाएँगे
पकृति ने फूलदार चूनर काढ़ा है
ऋतुराज  पीत साफ़े में आएँगे
हवाओं ने भी रंगत बदली है
खग भी खुशी से चहचहाएँगे
शुभ्र नभ के नील विस्तार पर
नन्हें तारे भी खूब टिमटिमाएँगे
तितलियों ने रंगीन फ्राक पहने हैं
बच्चे बागों में खिलखिलाएँगे
प्रेमी-जोड़े खुशी से चहके हैं
सपने अँखियों में झिलमिलाएँगे
वीणा शारदे की बजने को है
सुरमयी धुन फ़िजा में लहराएँगे
नव पकृति संग नव गीत लिए
हम भी तो स्वागत में गीत गाएँगे|

ऋता शेखर 'मधु'

10 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात

    रुख़सत हो गए अब जाड़े हैं
    दरख्तों ने जीर्ण पत्ते झाड़े हैं
    सुन्दर अभिव्यक्ति
    सादर

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  2. prakriti ki gatyatmkta ki sundar abhivykti, वीणा शारदे की बजने को है
    सुरमयी धुन फ़िजा में लहराएँगे
    नव पकृति संग नव गीत लिए
    हम भी तो स्वागत में गीत गाएँगे|

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  3. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (2-2-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  4. यौवन फागुनी हो चला
    हर दरख़्त बसंत के संग फेरे ले रहा ...

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  5. वसंत का इन्तजार हर किसी को होता है ,,
    सुन्दर रचना
    सादर!

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  6. वीणा शारदे की बजने को है
    सुरमयी धुन फ़िजा में लहराएँगे
    वाह .... अनुपम भाव संयोजन

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  7. सुरमयी धुन फ़िजा में लहराएँगे
    नव पकृति संग नव गीत लिए
    हम भी तो स्वागत में गीत गाएँगे|..हम भी तो इंतजार मे हैं.बहुत सुन्दर ..ऋता

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  8. बहारों का आगमन ओर स्वागत शुन्दर शब्दों से किया है आपने ...
    लाजवाब गीत ...

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