मेरे तीन दुर्मिल सवैया छंद...
१.
अनुशासित प्रांत महान बने, यह बात सदा सच ही रहती
सदभाव बसे जिस देश सदा, दुनिया बस ‘भारत’ ही कहती
जँह प्रीत नदी बन के बहती अरु वेद ऋचा नभ में उड़ती
वह पावन भूमि तपोवन सी, दिल से दिल की कड़ियाँ जुड़ती
२.
नव कोंपल से सजता, लगता तरु का हर डाल मनोहर है
खग-गान हवा तब गूँज उठे, लगता यह गायन सोहर है
जब धान पके, हर खेत सजे, चमकी सरसों पुखराज बनी
परिधान धरा कुछ यूँ पहनी, सुषमा उसकी अधिराज बनी
३.
फगुनाहट में ऋतुराज चले, धरती कुसुमी बन डोल रही
कलियाँ खिलतीं, तितली उड़ती, अलि–गूँज सखी-मन खोल रही
हर बौर सजी अमिया महकी, बगिया कुहु कोयल बोल रही
मनभावन मौसम, मंद हवा, कचनार कली रस घोल रही
---ऋता शेखर ‘मधु’
बहुत सुन्दर ऋता दी....
जवाब देंहटाएंकितना प्यारा ,लुभावना चित्रण है वसंत का....
सस्नेह
अनु
शुक्रिया अनु !!
हटाएंबहुत सुंदर, क्या कहने
जवाब देंहटाएंआभार !!
हटाएंमनभावन सुंदर छंद के लिए आपको हार्दिक बधाई!और शुभकामनाए!
जवाब देंहटाएंRecent Post: कुछ तरस खाइये
शुक्रिया सर !!
हटाएंउत्कृष्ट शाब्दिक चित्रण.....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मोनिका जी !!
हटाएंबढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार आदरेया ||
आभार !!
हटाएंसुव्यवस्थित सार्थक रचनाएँ होती हैं - विधा जो भी हो,बांधता है
जवाब देंहटाएंदी...शुक्रिया !!
हटाएं@
जवाब देंहटाएंजँह प्रीत नदी बन के बहती अरु वेद ऋचा नभ में उड़ती
वह पावन भूमि तपोवन सी, दिल से दिल की कड़ियाँ जुड़ती
आनद आ गया ..
कई बार पढ़ी यह मधुर रचना ! शायद आपकी जितनी रचनाये मैं पढ़ चुका हूँ उनमें यह सबसे अच्छी है !
बधाई !!
उत्साहवर्धन के लिए आभार सतीश जी !!
हटाएंफगुनाहट में ऋतुराज चले, धरती कुसुमी बन डोल रही
जवाब देंहटाएंकलियाँ खिलतीं, तितली उड़ती, अलि–गूँज सखी-मन खोल रही ..
वाह इतना मधुर छंद ... फाग की खुशबू जेहन में उतरने लगी इन शब्दों के द्वारा ... शायद सफल रचना इसी को कहते हैं ...
हर बौर सजी अमिया महकी, बगिया कुहु कोयल बोल रही
जवाब देंहटाएंमनभावन मौसम, मंद हवा, कचनार कली रस घोल रही
फगुनाहट का सुंदर चित्रण. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ऋता जी.