एक साधु बाबा किसी गाँव में पहुँचे| गाँववाले बड़े खुश हुए| सभी उनके दर्शन के
लिए बेताब हुए जाते थे| साधु बाबा ने कहा कि वे कल सुबह आएँगे और सबके घरों की बनी
खिचड़ी खाएँगे| गाँववाले उत्साहित हो गए| सबने बहुत मन से खिचड़ी पकाई| गाँव में
सभी जाति और सम्प्रदाय के लोग रहते थे| दूसरे दिन साधु बाबा गाँव में पधारे| सभी
चाहते थे कि वे उनकी खिचड़ी खाएँ| साधु बाबा सबके मन की बात समझ रहे थे| उन्होंने
कहा, सबकी खिचड़ी मिला दी जाए तब वे खाएँगे| सभी संप्रदाय के लोग अपनी खिचड़ी को
स्वादिष्ट मान रहे थे| पर बाबा जी की आज्ञा थी सो खिचड़ी मिला दी गई| सबके चेहरे
से मायूसी झलक रही थी| इसे देख साधु बाबा ने कहा कि उस इकट्ठी खिचड़ी से सब अपनी
अपनी खिचड़ी अलग कर लें| अब भला सबकी खिचड़ी अलग कैसे हो सकती थी| सबने कहा कि हम
सब मिलकर इसे खाएँगे| अपनी खिचड़ी को सबसे स्वादिष्ट साबित करने का विचार सबके मन
से निकल चुका था इसलिए सभी तनावमुक्त थे| सबने मिलजुल कर खिचड़ी खाई और साधु बाबा
जो संदेश देना चाहते थे उसमें सफल रहे|
एकता और भाइचारा में जो खुशी है वह सबकी समझ में आ चुका था|
....ऋता शेखर ‘मधु’
बहुत उम्दा प्रेरक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंrecent postकाव्यान्जलि: होली की हुडदंग ( भाग -२ )
सुंदर बोधकथा
जवाब देंहटाएंsamajik shauhardr aur samrasta ke shadhubad se nirmit swadist khidadi
जवाब देंहटाएंएकता की भावना और प्रेम के सन्देश से पूर्ण रचना ,बधाई ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कहानी ... सामाजिक एकरसता का पाठ पढाती ...
जवाब देंहटाएंप्रेम का सार्थक संदेश देती उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश देती बेहतरीन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लघुकथा
जवाब देंहटाएंसकारात्मक संदेश
कोई तो हो राह दिखाने वाला..
जवाब देंहटाएंप्रेम का सार्थक संदेश देती सुंदर बोधकथा..
जवाब देंहटाएंwah re khichhri.....:)
जवाब देंहटाएंगहन अनुभूति प्रस्तुति सहज सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
मुझे ख़ुशी होगी