शनिवार, 30 मार्च 2013

मेरी खिचड़ी तेरी खिचड़ी


एक साधु बाबा किसी गाँव में पहुँचे| गाँववाले बड़े खुश हुए| सभी उनके दर्शन के लिए बेताब हुए जाते थे| साधु बाबा ने कहा कि वे कल सुबह आएँगे और सबके घरों की बनी खिचड़ी खाएँगे| गाँववाले उत्साहित हो गए| सबने बहुत मन से खिचड़ी पकाई| गाँव में सभी जाति और सम्प्रदाय के लोग रहते थे| दूसरे दिन साधु बाबा गाँव में पधारे| सभी चाहते थे कि वे उनकी खिचड़ी खाएँ| साधु बाबा सबके मन की बात समझ रहे थे| उन्होंने कहा, सबकी खिचड़ी मिला दी जाए तब वे खाएँगे| सभी संप्रदाय के लोग अपनी खिचड़ी को स्वादिष्ट मान रहे थे| पर बाबा जी की आज्ञा थी सो खिचड़ी मिला दी गई| सबके चेहरे से मायूसी झलक रही थी| इसे देख साधु बाबा ने कहा कि उस इकट्ठी खिचड़ी से सब अपनी अपनी खिचड़ी अलग कर लें| अब भला सबकी खिचड़ी अलग कैसे हो सकती थी| सबने कहा कि हम सब मिलकर इसे खाएँगे| अपनी खिचड़ी को सबसे स्वादिष्ट साबित करने का विचार सबके मन से निकल चुका था इसलिए सभी तनावमुक्त थे| सबने मिलजुल कर खिचड़ी खाई और साधु बाबा जो संदेश देना चाहते थे उसमें सफल रहे|
एकता और भाइचारा में जो खुशी है वह सबकी समझ में आ चुका था|

....ऋता शेखर मधु

12 टिप्‍पणियां:

  1. एकता की भावना और प्रेम के सन्देश से पूर्ण रचना ,बधाई ।

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  2. सुन्दर कहानी ... सामाजिक एकरसता का पाठ पढाती ...

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  3. प्रेम का सार्थक संदेश देती उम्दा रचना

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  4. सार्थक संदेश देती बेहतरीन प्रस्तुति.

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  5. कोई तो हो राह दिखाने वाला..

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  6. प्रेम का सार्थक संदेश देती सुंदर बोधकथा..

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  7. गहन अनुभूति प्रस्तुति सहज सार्थक रचना
    बहुत बहुत बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    मुझे ख़ुशी होगी

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