मौन कहीं निःशब्द है और कहीं है अति मुखर
बना कहीं अवहेलना या कहीं बने बहुत प्रखर
मौन अधर के नम दृगों की बनती बड़ी कहानी
अनकही बातों में मौन भर देता अपनी रवानी
नदिया मौन सागर मौन पर्वत मौन अम्बर मौन
हर मौन का जीवन दर्शन, बिन कवि के समझे कौन?
बना कहीं अवहेलना या कहीं बने बहुत प्रखर
मौन अधर के नम दृगों की बनती बड़ी कहानी
अनकही बातों में मौन भर देता अपनी रवानी
नदिया मौन सागर मौन पर्वत मौन अम्बर मौन
हर मौन का जीवन दर्शन, बिन कवि के समझे कौन?
तुझ में रम कर सुध बुध खोई मेरे नटवर कान्हा|
मइया कह मुझको दुलरावे मेरा प्रियवर कान्हा|
बाल सखा गोपी की बातें मुझको नहिं हैं भातीं,
मैं ना मानूँ छलिया है वह मेरा ईश्वर कान्हा||
..........................ऋता
सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (19-04-2014) को ""फिर लौटोगे तुम यहाँ, लेकर रूप नवीन" (चर्चा मंच-1587) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री सर !!
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