पानी दो बेटे...(लघुकथा)
वह भारत देश था जो मृत आत्माओं को भी पानी पिलाता था|
पितृपक्ष में प्रेतात्माएँ अपनी संतति के घरों के चक्कर लगा रही थी|
भीषण गर्मी से परेशान...मगर पानी का नामोनिशान नहीं|
जब उनसे नहीं रहा गया तो मनुष्य का रूप धारण कर जा पहुँचे अपनी संतानों के घर|
'बेटे, हमारे हिन्दुस्तान में मृत पूर्वज अपनी संतान की खैरखबर लेने आते हैं ,और उनके पुत्र उन्हें शीतल जल पिलाते हैं...तुमने वह रिवाज छोड़ दिया क्या?'
''नहीं तो...याद है...पर उन्हे शुद्ध शीतल जल पिलाएँ कैसे...हमारे पूर्वजों ने धरती पर बहुत अत्याचार किया है...यह नहीं सोचा कि आने वाली पीढ़ी किस तरह जीवन जीएगी...ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रहे हैं हम...पीने योग्य जल भी नहीं है तो उन्हें कैसे पिलाएँ|"
''हम्म्म...मगर बेटे जो जल तुम पीते हो वही पिला दो|''
''बाबा, उनकी करनी के कारण हम पानी खरीदकर पीते हैं...कुदरत ने हमें अकूत जल भंडार दिया था...मगर अब वह बेहद कीमती हो गया है|''
सभी प्रेतात्माओं को लगभग यही जवाब मिला|
वे वापस एक स्थान पर इकट्ठा हुए और सबने अपनी गल्ती स्वीकार की|
..................ऋता
सुंदर सोच !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शास्त्री सर !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ब्लॉग बुलेटिन !!
जवाब देंहटाएंहम्म......................।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहम भी वही गलती दोहरा रहे हैं...
जवाब देंहटाएं