2122 2122 2122
देश को हर हाल में
बस है बचाना
हो सके तो जान भी
अपनी गँवाना
तुम हँसो तो साथ में
हँसता जमाना
अश्क आँखों में सदा
सबसे छुपाना
क्या खरी ही तुम सदा
कहते रहे हो
मिर्च तुमको इसलिए
कहता जमाना
वे चुरा लेते हमेशा
भाव मेरे
है नहीं आसान अब
इसको पचाना
चाँद में भी दाग है
कहते रहे हो
बोल कर यह चाहते
किसको बचाना
फावड़े यूँ ही नहीं
थामे हैं हमने
जानता हूँ राह अपनी
खुद बनाना
बेटियाँ फ़नकार हैं
मानो इसे भी
पंख से उनको हमें ही है सजाना
*ऋता
शेखर ‘मधु’*
आभार आपका कुलदीप जी !
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