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देश को हर हाल में
बस है बचाना
हो सके तो जान भी
अपनी गँवाना
तुम हँसो तो साथ में
हँसता जमाना
अश्क आँखों में सदा
सबसे छुपाना
क्या खरी ही तुम सदा
कहते रहे हो
मिर्च तुमको इसलिए
कहता जमाना
वे चुरा लेते हमेशा
भाव मेरे
है नहीं आसान अब
इसको पचाना
चाँद में भी दाग है
कहते रहे हो
बोल कर यह चाहते
किसको बचाना
फावड़े यूँ ही नहीं
थामे हैं हमने
जानता हूँ राह अपनी
खुद बनाना
बेटियाँ फ़नकार हैं
मानो इसे भी
पंख से उनको हमें ही है सजाना
*ऋता
शेखर ‘मधु’*
जय मां हाटेशवरी....
जवाब देंहटाएंआप ने लिखा...
कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
दिनांक 23/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है...
इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
कुलदीप ठाकुर...
आभार आपका कुलदीप जी !
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