गुरुवार, 21 जनवरी 2016

त्रिवेणी

पाँच त्रिवेणियाँ...
१.
सत्य का तेज सहना आसान नहीं
जो नैनो से बोले वो बेजुबान नहीं

ऐ झूठ, तू काले चश्मे से ही इसे देख पाएगा
२.
मन मेरा पतंग हुआ जाता है
बे रोक टोक स्वच्छंद हुआ जाता है

मँझे डोर में बंधे रहना ही हमें भाता है
३.
सरसो के खेत से जो देखा आसमान
पीत वर्ण में दिखे अपने सारे अरमान

पुलकारी दुपट्टे पर बसंत छा गया
४.
श्मशान से उठता रहा घना घना धुआँ
लम्हा लम्हा जिन्दगी उड़ती रही

नश्वरता की झलक गहरे उतर गई
५.
वो बन्द कमरे में पड़ा खाँसता रहा
मन ही मन जीवन को बाँचता रहा

उम्र की वह दहलीज मन दहला गई

*ऋता शेखर ‘मधु’*

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