बुधवार, 6 जनवरी 2016

जज्बात

जज़्बात-लघुकथा

'अदिति, भाई के लिए दही बड़े भी बना लेना| उसे बहुत पसन्द है| और हाँ, इमली वाली खट्टी मीठी चटनी भी भाभी के लिए'- माँ ने कहा|

जी माँ- कहती हुई अदिति किचेन में जुट गई| शाम को उसके भाइ-भाभी आलोक और अन्वेषा पूरे दो साल बाद विदेश से आ रहे थे|
हवाई जहाज आने की सूचना मिल चुकी थी| बस आधे घंटे में वे पहुँचने वाले थे| हर आहट पर अदिति और उसकी माँ की आँखें दरवाजे की ओर उठ जाती| तभी फोन की घंटी बजी|
''माँ, हवाई अड्डा से मैं सीधे अन्वेषा के घर आ गया हूँ| उसकी इच्छा थी कि पहले वह अपनी माँ से मिले|''
''अच्छा किया बेटा जो उसके जज्बात की कद्र की तुमने'',-थरथरा गए शब्दों को माँ ने आलोक को नहीं सुनने दिया|
*ऋता शेखर 'मधु'*

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.01.2016) को " क्या हो जीने का लक्ष्य" (चर्चा -2215) पर लिंक की गयी है कृपया पधारे। वहाँ आपका स्वागत है, सादर।

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  2. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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