शनिवार, 23 जनवरी 2016

नव वर्ष का नवगीत

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नव वर्ष का नवगीत
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नव प्रभात की नवल किरण
अब डाल रही है डेरा
नील गगन में मृदुल गान
खग में ज्यूँ करे
बसेरा

पँखुड़ियों पर गिरती हुई
वो मखमल जैसी बूँदें
थिरकी तितली बागों में
अँखियों को अपनी मूँदे
मोती मन को परख रहे
शब्दों का डाले घेरा
नव्य वर्ष का नवीकरण
पंजी में हुआ
घनेरा

नई फसल की मादकता
खेत खेत में झूम रही
नई नवेली सी चाहत
पलक छाँव में घूम रही
आँख मिचौली खेल रहा
चपल धूप संग मुँडेरा
हर साल की भाँति आए
रंग दीप का
पगफेरा

सुख की नदिया पैर रही
दिन दुख के अब दूर हुए
गम की आँधी चली गई
खुशियों के संतूर हुए
इस नश्वर जग में ना कुछ
तेरा या फिर है मेरा
नई सोच से हो शोभित
मानव का नया
सवेरा
*ऋता शेखर ‘मधु’*

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