आनत लतिका गुच्छ से, छनकर आती घूप
ज्यों पातें हैं डोलतीं, छाँह बदलती रूप 40
ज्यों पातें हैं डोलतीं, छाँह बदलती रूप 40
खग मानस अरु पौध को, खुशियाँ बाँटे नित्य
कर ले मेघ लाख जतन, चमकेगा आदित्य
कर ले मेघ लाख जतन, चमकेगा आदित्य
दुग्ध दन्त की ओट से, आई है मुस्कान
प्राची ने झट रच दिया, लाली भरा विहान
प्राची ने झट रच दिया, लाली भरा विहान
लेकर गठरी आग की, वह चलता दिन रात
बदले में नभ दे रहा, तारों की सौगात
बदले में नभ दे रहा, तारों की सौगात
नित दिन ही चलता रहे, नियमित जीवन चक्र
बोली में जब व्यंग्य हो, ग्रहण सूर्य हो वक्र
बोली में जब व्यंग्य हो, ग्रहण सूर्य हो वक्र
सौरमंडल बना रहा, इक कर्मठ सरकार
सूरज तो सिरमौर है, मेघ खा रहे खार
सूरज तो सिरमौर है, मेघ खा रहे खार
ब्रम्हांड में गूँज रहा, कपालभाति का ओम्
बड़ी अनोखी है ख़ुशी, झूम रहा है व्योम
बड़ी अनोखी है ख़ुशी, झूम रहा है व्योम
जब जब ये सूरज करे, तपते दिन का ज़िक्र
तब तब होती चाँद को, शीतलता की फ़िक्र
तब तब होती चाँद को, शीतलता की फ़िक्र
सूरज की हर इक किरण, रच देती है गीत
नारंगी में वीर रस, नील श्याम की प्रीत
नारंगी में वीर रस, नील श्याम की प्रीत
लेखन में लेकर चलें, सूरज जैसा ओज
शीतल मन की चाँदनी, पूर्ण करे हर खोज
शीतल मन की चाँदनी, पूर्ण करे हर खोज
-----ऋता....
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