आदर्श घर
डॉक्टर बन चुकी निकिता भाई की शादी में आई थी . उसका जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जहाँ बेटा-बेटी का कोई भेदभाव न था| अच्छे संस्कारों के साथ बड़ी हुई थी .
सबने उसे सर-माथे पे बिठाया | वह भी पूरे घर में चहकी फिर रही थी| माँ कुलदेवता की पूजा में व्यस्त थी और निकिता कहती जा रही थी-
'माँ , हमारा घर कितना आदर्श है न! बेटा- बेटी में फर्क नहीं करता|'
पूजा के बाद प्रसाद बँटने लगा तो दादी की आवाज आई|
"बहू, सबसे किनारे वाले देवता का प्रसाद निक्की को न देना|"
"क्यों दादी" निकिता की आवाज में हल्की सी नाराजगी थी|
"निक्की बेटा, वो प्रसाद सिर्फ खानदान के बच्चे ही खा सकते हैं| वह तेरा भाई ही खा सकता है|"
अचंभित सी निकिता ने अपना बढ़ा हुआ हाथ पीछे खींच लिया|
--ऋता शेखर 'मधु'
डॉक्टर बन चुकी निकिता भाई की शादी में आई थी . उसका जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जहाँ बेटा-बेटी का कोई भेदभाव न था| अच्छे संस्कारों के साथ बड़ी हुई थी .
सबने उसे सर-माथे पे बिठाया | वह भी पूरे घर में चहकी फिर रही थी| माँ कुलदेवता की पूजा में व्यस्त थी और निकिता कहती जा रही थी-
'माँ , हमारा घर कितना आदर्श है न! बेटा- बेटी में फर्क नहीं करता|'
पूजा के बाद प्रसाद बँटने लगा तो दादी की आवाज आई|
"बहू, सबसे किनारे वाले देवता का प्रसाद निक्की को न देना|"
"क्यों दादी" निकिता की आवाज में हल्की सी नाराजगी थी|
"निक्की बेटा, वो प्रसाद सिर्फ खानदान के बच्चे ही खा सकते हैं| वह तेरा भाई ही खा सकता है|"
अचंभित सी निकिता ने अपना बढ़ा हुआ हाथ पीछे खींच लिया|
--ऋता शेखर 'मधु'
रूढ़िवादिता तब खलती है जब उसके पीछे का मंतव्य भेदभाव और अंधविश्वास हो। समाज का सच कुछ इसी तरह विचलित करता है कोमल भावों में पलते बचपन को। प्रेरक प्रस्तुति। सार्थक सन्देश लिए लघुकथा।
जवाब देंहटाएंओह ...निकिता के मन की पीड़ा समझ सकते हैं ... सार्थक लघुकथा .
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