''बेटे, सौरभ की शादी की बात कहीं पक्की हुई?'' फोन पर रमोला जी ने बेटे मनोज से यह बात पूछी|
सौरभ रमोला जी का पोता था और मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करता था| सरल सहज सौरभ ने कभी किसी लड़की की ओर आँख उठाकर नहीं देखा, इसलिए प्रेम विवाह का प्रश्न ही नहीं उठता था| अरेंज्ड मैरिज में उसकी शर्त थी कि लड़की भी कामकाजी चाहिए थी|
''नहीं माँ, अभी नहीं| तीन जगहों पर बात आगे बढ़ी, दोनो मिले फिर लड़की ने इन्कार कर दिया|''
''क्यों, क्या कमी है हमारे सौरभ मे," रमोला जी ने आहत स्वर में पूछा|
''उसका श्यामल वर्ण'' मनोज जी ने बताया|
''उफ, लड़कियों की हिम्मत तो देखो| लड़के की सीरत देखी जाती है सूरत नहीं| ,'' माँ को यह बात हजम नहीं हुई|
सारी बातें स्पीकर पर हो रही थीं और रमोला जी की बेटी सृष्टि भी सुन रही थी|
''अब लड़कियाँ आत्मनिर्भर हो चुकी हैं| उन्हें भी निर्णय का अधिकार मिल चुका है| अब सोचो अम्मा , मनोज भैया के लिए लड़की देखने के समय आपने भी कई सर्वगुणसंपन्न लड़कियों को साँवले होने की वजह से छोड़ दिया था|''
सोचती हुई माँ को छोड़कर सृष्टि दूसरे काम निपटाने चली गई थी|
--ऋता शेखर 'मधु'
सोचती हुई माँ को छोड़कर सृष्टि दूसरे काम निपटाने चली गई थी|
--ऋता शेखर 'मधु'
शानदार कटाक्ष
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 03-08-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2686 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सहित